बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

ठाह ई कोनी पड़ियो

😃ठाह ई कोनी पड़ियो 


कीकर बित्यो जमानो
कीकर बीती उमर।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

काई लादो,कांई खादो,
काई लिदो,कांई दिदो,

ठाह ई कोनी पड़ियो।

कठे कमायो,कठे गमायो,
कितरा आया,कितरा गिया,

ठाह ई कोनी पड़ियो।

बाळपणो बित्यो,जवानी बीती,
गेडी पकड़ी,बूढापो आयगो,*

ठाह ई कोनी पड़ियो।

काले तक टाबर गिणीजतो,
आज दादो, नानो हुयगो,

ठाह ई कोनी पड़ियो।

कोई केवे नांव कमायो,
कोई केवे नांव गमायो,
पर ¡सच्ची बात रौ!

ठाह ई कोनी पड़ियो।

मायता री सुणी,
टाबरा री सुणी।
पर म्हारी  कुण ई सुणी?

ठाह ई कोनी पड़ियो।


लुगाई केवे संबळ जावो,
थोड़ा मिनख व्हे जावो,
इतरा दिन मैं कांई हो?

ठाह ई कोनी पड़ियो।

मोट्यारपणा सूं आज तक,
गधा रे ज्यू लदियों,
पग फाडा पड़गा।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

टाबर केवे छाना माना बैठ जावो,
थाने ठाह कोनी पड़े,
म्हे जुण पूरी कीदी…?

ठाह ई कोनी पड़ियो।

धोला व्हेगा बाल,
लटक गिया गाल,
मुंडो पोपळॉ व्हेगो,

ठाह ई कोनी पड़ियो।

समै पलटीयो,मिनख पलटीया,
कितरा छूटा,कितरा साथे रिया,

ठाह ई कोनी पड़ियो।

काले तक मसकरिया करतो,
सायनो संग।
आज डोकरियो व्हेगो।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

घर रौ लोन,गाड़ी रौ लोन,
टी.वी रौ लोन,मोबाईल रौ लोन,
चुकावता चुकावता रिटायर व्हेगो।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

रोब,रुतबो,गाड़ी,बंगला,
नौकर चाकर,ठाट पाट,
कद माळीपना उतरगा।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

मिनख केवेला,
अबार तो बैठो हो हथाई में,
भायलो जातो रैयो।

ठाह ई कोनी पड़ियो।

दान कर,मान कर,
श्रम कर,धरम कर,
मजा ले ले जिंदगी रा।

पछे केवेला,
ठाह ई कोनी पड़ियो।

बुधवार, 15 जून 2022

कायमखानियों का इतिहास

'नबाब दादा कायम खॉ दिवस' पर विशेष (14 जून
________________

आज कायमखानी कौम के प्रथमb पुरुष और तत्कालीन हिसार (हरियाणा) रियासत के नवाब दादा कायम खान साहब का 600 वां ( 14 जून) को शहादत दिवस है।  नबाब दादा कायम खॉ  की जन्म स्थली ददरेवा (चूरू) थी। जहाँ पर नवाब कायम खान स्मारक बना हुआ है। इस स्मारक में करीब 200 कायमखानी शहीद सैनिकों की पट्टिकाएं लगी हुई हैं। यह वे भारतीय सैनिक हैं जो विभिन्न युद्धों एवं सैन्य ऑपरेशनों में देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे।

कायमख़ानी कौम का इतिहास - 

ददरेवा (चुरु) के चौहान साम्भर के चौहानों की एक शाखा थे।लम्बी अवधी से इनका ददरेवा पर अधिकार था और इनकी उपाधी राणा थी। चौहानों में राणा की उपाधी दो शाखाएं प्रयुक्त करती थी। पहली मोहिल और दूसरी चाहिल।ददरेवा के चौहान चाहिल शाखा के थे।जाहरवीर गोगाजी महाराज जो करमचंद चौहान (दादा कायम खॉ) के पूर्वज थे, के मंदिर के पुजारी आज भी चाहिल हैं।मोटे राव चौहान ददरेवा के राजा जाहरवीर गोगाजी चौहान का वंशज था।
जाहरवीर गोगाजी चौहान (गोगाजी महाराज/गोगाजी पीर राजस्थान में लोकदेवता के रूप में मान्य है) से 16 पीढ़ी बाद कर्मचंद  चौहान (नबाब दादा कायम खॉ) हुआ।
करमचंद चौहान (दादा कायम खॉ) बादशाह फिरोजशाह तुगलक द्वारा इस्लाम में परिवर्तित हुए थे। शाह तुगलक ने करमचंद चौहान को कायम खान (उर्दू का नाम:.( نواب قائم خان,)  नाम दिया। कायम खान के वंशज कायमखानी कहलाए। कायम खान को दिल्ली सल्तनत का अमीर बनाया गया था। जिसका उल्लेख तुज्क ए सुल्तान ए डेक्कन के मेह्बूबिया मीर महबूब अली खान द्वारा किया गया है!
नवाब कायम खान ने हिजरी ७५४ में या ७६० हिजरी में इस्लाम ग्रहण किया था। सुल्तान फिरोजशाह कायम खान को  खान ए जेहान का शीर्षक देकर हिसार के फिरोजह का राज्यपाल नियुक्त किया था। 
नवाब कायम खान देहली सल्तनत के बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक और खिज्र खान के समय तक हिसार के राज्यपाल के रूप नियुक्त रहे थे।खिज्र खान और दौलत खान लोधी, जो एक वर्ष और तीन महीने तक दिल्ली सल्तनत के शीर्ष पर थे,बाद में कायम खान और खिज्र खान के बिच कुछ मतभेद पैदा हो गए और उस समय खिज्र खान एक सैन्य अभियान में गए हुए थे तब खिज्र खान को महमूद तुगलक के कुछ दरबारियों ने खिज्र खान को भड़काया की नबाब कायम खान अन्य दरबारियों से मिलकर उसको गद्दी से हटवाना चाहते है। इस वजह से खिज्र खान ने सैन्य अभियान बिच में छोड़ कर नवाब कायम खान को हिंसार से बुलाकर एक बैठक का आयोजन किया जिसमे नबाब कायम खान को आमंत्रित किया और फिर हिजरी संवत २० वी जम्मादी ८२२ को धोखे से जमुना के किनारे बुला कर उनकी हत्या कर दी उनके शव को जमुना में फेंक दिया जिसका वर्णन "तारीख ए फरिस्ता "में मिलता है।
कायमखां के सात बेगम (रानियाँ) थी जो सब हिन्दू थी. 

कायमखां के सात रानियों के नाम इस प्रकार थे-
(i) दारूदे - साडर के रघुनाथसिंह पंवार की पुत्री  |
(ii) उम्मेद कँवर - सिवाणी के रतनसिंह जाटू की पुत्री | 
(iii) जीत कँवर - मारोठ के सिवराज सिंह गोड़ की पुत्री |
(iv) सुजान कँवर - खंडेला के ओलूराव निर्वाण की पुत्री | 
(v) सुजान कँवर - जैसलमेर के राजपाल भाटी की पुत्री | 
(vi) रतन कँवर - नागौर के द्वारकादास की पुत्री |
 (vii) चाँद कँवर - होद के भगवानदास बड़गूजर की पुत्री |

राजपूताना से संबंध - 

नबाब दादा कायम खॉ से क़ायमख़ानी वंश की शुरुआत हुई। कायमखानी मुसलमानों में आज भी 90 प्रतिशत रिवाज़ राजपूतों के हैं। इसका कारण ये है कि करम सिंह चौहान, कायम खान तो बन गए लेकिन राजपूताना गौरव से नाता जोड़े रखा। तेरहवी सदी से लेकर अब तक राजपूतों के साथ कायमखानियों का अटूट रिश्ता बना हुआ है।कायमखानी मुसलमानों में आज भी राजपूती परम्पराएं न सिर्फ सांस ले रही है, बाकि फैल रही हैं। कायमखानी मुसलमान महिलाओं और राजपुताना महिलाओं की वेशभूषा में कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आता. कायमख़ानी हवेलियों का आर्किटेक्ट भी हूबहू राजपूताना जैसा ही है। शादियों में ज्यादातर परम्पराएँ राजपुत समाज वाली होती है।
कायमख़ानी चौहानों के वंशज हैं, इसलिए आज भी कायमखानी ख़ुद को योद्धा  ही मानते हैं। इसलिए जब आज भी बात भविष्य चुनने की आती है तो कायमखानी फौज में जाते हैं।कायमखानी मुसलमान हरियाणा के हिसार से लेकर राजस्थान के झुंझुनूं, चूरू, जयपुर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर और यहां तक की पाकिस्तान में भी हैं।

कायमख़ानी समाज और फौज -

शेखावाटी विशेषकर झुंझुनूं कायमखानियों का गढ है। झुंझुनूं को फौजियों का जिला भी कहा जाता है। झूंझूनु जिले से अब तक करीब 200 के आसपास फौजी शहीद हुए हैं। कायमखानी आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए है। कायमखानियों में बच्चे के जन्म से लेकर तमाम मंगल कार्यक्रमों में सारे रीति रिवाज़ आज भी राजपुताना ढंग से ही होते हैं। आज जब नफरत सिर उठा रही है उस दौर में कायमखानी समाज गंगा जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है।चार-पांच जिले विशेषकर शेखावाटी तक ही सिमटे कायमखानियों की संख्या पांचलाख के करीब होगी। सेना में भर्ती होना तो मानो कायमखानियों का शगल है। आज भी कायमखानी युवक की पहली पसन्द सेना में भर्ती होना ही है। कायमखानी युवक ग्रिनेडीयर में सबसे ज्यादा भर्ती होते हैं इसीलिये भारतीय सेना की ग्रिनेडीयर में 13 फीसदी व कैवेलेरी में 4 फीसदी स्थान कायमखानियों के लिये है।झुंझुनू जिले मे कायमखानी समाज के आज भी ऐसे कई परिवार मिल जायेंगें जिनकी लगातार पांच पीढिय़ां सेना में कार्यरत रहीं हैं।
झुंझुनू जिले का नूआ वह खुशनसीब गांव है जो सैनिकों के गांव के लिए प्रसिद्ध है। नूआ  गांव के पूर्व सैनिक मोहम्मद नजर खां के आठ बेटे हैं। सात बेटे सेना में बहादुरी दिखाते हुये देश के लिए लड़ाइयां लड़ीं। इस परिवार के पांच भाइयों ने भारत-पाक के बीच 1971 की जंग में अलग-अलग मोर्चों पर रहते हुए दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के वक्त भी इसी परिवार के चार भाई गोस मोहम्मद, मकसूद खां, लियाकत खां, शौकत खां ने मोर्चा लिया था। मरहूम सिपाही नजर मोहम्मद खां के समय से चली आ रही देश रक्षा की परम्परा पांचवीं पीढ़ी में बरकरार है।इसी गांव के दफेदार फैज मोहम्मद के परिवार की चौथी पीढ़ी देश रक्षा के लिए सेना में है।15,000 की आबादी वाले नुआ गांव में 90 फीसदी घरों में फौजी हैं।इसी गांव के ताज मोहम्मद खां प्रदेश के कायमखानी समाज के पहले सेना कैप्टन थे।उन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंपायर (ओबीई) अवार्ड मिला। इस अवार्ड में पांच पीढिय़ों को पेंशन मिलती है। इस गांव के कैप्टन अयूब खां को वीरचक्र मिला था और वे केंद्र में मंत्री भी रहे।मरहूम कैप्टन अयूब खान आजादी के बाद राजस्थान से चुने जाने वाले एकमात्र मुस्लिम सांसद भी हैं। राज्य वक्फ  बोर्ड के चेयरमैन रहे और कायमखानी समाज के पहले पुलिस आइजी लियाकत अली खां इसी गांव की शान हैं।

कायमखानियों में देशभक्ति कूट कूट के भरी है। झुंझुनूं जिले का मुस्लिम बाहुल्य गांव धनूरी को  फौजियों की खान कहा जाता है। गांव में हर घर में फौजी है। धनूरी गांव में लगभग 600 से भी ज्यादा फौजी हैं। इस गांव के 18 बेटे विभिन्न युद्धों में व सरहद की रक्षा करते हुए शहीद हो चुके हैं।
राजस्थान में सर्वाधिक शहीद धनूरी गांव ने ही दिए हैं। सन 1962 भारत-चीन के युद्ध में गांव के मोहम्मद इलियास खां, मोहम्मद सफी खां और निजामुद्दीन खां ने देश सेवा के लिए लड़ते-लड़ते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

इनके अलावा भारत-पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई में मेजर महमूद हसन खां, जाफर अली खां और कुतबुद्दीन खां देश सेवा के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। करगिल युद्ध में गांव मोहम्मद रमजान के बहादूरी के चर्चे आज भी होते है।
धनूरी गांव के गुलाम मोहीउद्दीन खान की पांच पीढिय़ां सेना में है।
1965 के भारत-पाक युद्ध में नूआ गांव के कायमखानी समाज के कैप्टन अयूब खान ने पाकिस्तानी पैटन टैंको को तोडक़र युद्ध का रूख ही बदल डाला था। उनकी वीरता पर उन्हे वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। कैप्टन अयूब खान 1985 से 1989 तक व 1991 से 1996 तक झुंझुनू से लोकसभा के सांसद तथा भारत सरकार में कृषि राज्य मंत्री भी रह चुके हैं।

कैप्टन अयूब खान राजस्थान से लोकसभा चुनाव जीतने वाले एक मात्र मुस्लिम सांसद रहें हैं। कैप्टन अयूब खान के दादा, पिता सेना में कार्य कर चुके हैं। उनके अनेको परिजन व उनके बच्चे आज भी सेना में कार्यरत हैं। कैप्टन अयूब खान के परिवार की पांचवीं पीढ़ी अभी सेना में कार्यरत है।

कायमखानी समाज के अनेक लोग विभिन्न सरकारी उच्च पदों पर कार्यरत है। झाडोद डीडवाना के भवंरु खान राजस्थान उच्च न्यायालय में जज है, वहीं चोलुखा डीडवाना के कुंवर सरवर खान राजस्थान पुलिस में महानिरीक्षक है। नूआ झुंझूनू के अशफाक हुसैन खान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है तो सुजानगढ़ के मोहम्मद रफीक जस्टिस है। नूआ के लियाकत अली पूर्व पुलिस महानिरीक्षक व राजस्थान वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहें हैं। बीजेपी सरकार में नम्बर दो की हैसियत रखने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री युनुश खान भी कायमखानी समुदाय से आते है।
कायमखानी समाज में शिक्षा के प्रति रूझाान प्रारम्भ से ही रहा है इसी कारण सेना के साथ ही अन्य सरकारी सेवाओं में भी समाज के काफी लोग कार्यरत है। कायमखानी समाज अपने आप में एक विरासत संजोये हुये है।
प्रथम विश्वयुद्ध में 34 वीं पूना होर्स की कायमखानी स्क्वाड्रन ने फिलिस्तीन के पास हाईफा पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें 12 कायमखानी जवान शहीद हुये थे। आज भी हाईफा विजय की याद में हाईफा डे समारोह मनाया जाता है।
प्रथम विश्वयुद्ध में करीबन 70 कायमखानी जवानों को विभिन्न सम्मानपत्रों से सम्मानित किया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध में कायमखानियों द्वारा प्रदर्शित उनके साहस, शूरवीरता व वफादारी से प्रभावित होकर अंग्रेज हुकूमत ने उन्हे मार्शल रेस मानते हुये फौज में उनके लिये स्थान आरक्षित किये थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध में 18 वीं कैवेलेरी के कायमखानियों का स्क्वाड्रन मिडिल ईस्ट में दुश्मनों से घिर जाने के बावजूद भी अपने आपरेशन टास्क में सफल रहा उसी दिन की याद में आज भी टोबरूक डे मनाया जाता है। इस युद्ध में भी उन्होने कई पदक हासिल किये थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में 8 कायमखानी जवान शहीद हुये थे।1947 में देश के बंटवारे के वक्त कायमखानियों ने भारत में ही रहने का फैसला किया तथा पूर्ववत सैनिक सेवा को ही प्राथमिकता दी।आजादी के बाद अकेले  झुंझुनू जिले के  धनूरी गांव से 7 कायमखानी जवान शहीद हुए है।कायमखानी समाज के लिए सेना में जाना महज नौकरी नहीं, एक परंपरा और परिवार के लिए रुतबा की बात है।
आज के परिदृश्य में जरूरत है कायमखानी समाज दुसरी कौमों के लिए बडे भाई के भूमिका निर्वाह करें। सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक ताकत हासिल कर आने वाले नस्लों के लिए एकजुटता और इत्तिहाद का संदेश दें।
ददरेवा में उपस्थित जनाब पूर्व मंत्री यूनुस खान साहब व कर्नल शौकत खान जी G खान साहब का आभार जिन्होंने अपना कीमती समय दिया आभार कॉम के रभी रहनुमाओं का जिन्होंने ददरेवा में आज अपनी उपस्थित दर्ज करवाई ।।

गुरुवार, 27 मई 2021

बाहर का डाक्टर

कोई भी बाहर का डाक्टर राजस्थान में आकर अस्पताल  नहीं खोल सकता 

क्यों? 

क्योंकि राजस्थान के मरीज की बिमारी राजस्थान के डाक्टर के अलावा कोई समझ ही नहीं सकता 

कुछ राजस्थानी बीमारियां :-

"पिंडी फ़ाटै है"



"कालजे मे धुओं उठै है

"जी दुःख पाव है"

"सार दिन माथौ भन भन करै है"



"पेट म कुलल कुलल होव है"

"कालजे म कुलमुलाट सी होव है"

"दांत कुलै है"

"जी सो उठ है"

"दो जना बोलेडा भी कोई न सुहाव है"

"गोडा चु चु करें  है"

"कान में सईं सईं होरी है "

"कालजे में धकल बकल लाग री है"

"जी राजी कोनी"



ऐसी ऐसी बीमारी सुनकर अच्छे अच्छे MBBS को अपनी डिग्री पर शक हो जाता है कि साला कहीं ये Chapter छूट तो नहीं गया था।।।

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

चारण काव्य

चारण भक्त कवियों रै चरणां में.....

चारणों में काव्य सृजनकर्ताओं की एक लंबी श्रृंखला रही है।
जिन्होंने निसंदेह राजस्थानी साहित्य को विविध आयामी बनाकर ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उन सभी सत्पुरुषों को सादर प्रणाम।*
मेरी हार्दिक इच्छा है कि उन चारण मनीषियों पर एक पुस्तक का प्रणयन किया जाए जिन्होंने ग्रहस्थ अथवा संन्यास जीवन में रहकर हरिभजन पर जोर रखा ।उनकी उस साधना को लोकमान्यता मिली ।
ऐसी कुछ हुतात्माओं के श्रीचरणों में एक काव्यांजलि प्रस्तुत कर रहा हूं।*
मेरा यह कतई दावा नहीं है कि चारणों में इतने ही भक्त हुए।इनसे कहीं ज्यादा हुए लेकिन मुझे इतने ही नाम ज्ञात थे।
अतः आप सभी विद्वानों से अपेक्षा रखता हूं कि मैं जिन महात्माओं के नाम भूल गया हूं अथवा कुछ जानकारियां गलत लिख चूका हूं तो मार्गदर्शन कर कृतार्थ करेंगे ताकि पुस्तक सही रूप में आ सके।
चारण भगत कवियां रै चरणां में सादर-
        दूहा
चारण वरण चकार में,
कवि सको इकबीस।
महियल़ सिरहर ऊ मनूं,
ज्यां जपियो जगदीश।। 1

रातदिवस ज्यां रेरियो,
नांम नरायण नेक।
तरिया खुद कुल़ तारियो।
इणमें मीन न मेख।।2

तांमझांम सह त्यागिया,
इल़ कज किया अमांम।
भोम सिरोमण वरण भल,
निरणो ई वां नांम।।3

जप मुख ज्यां जगदीश नै,
किया सकल़ सिघ कांम।
गुणी करै उठ गीधियो,
परभातै परणांम।।4

भगत सिरोमण भोम इण,
तजिया जाल़ तमांम।।
गुणी मनै सच गीधिया,
रीझवियो श्रीरांम।।5
        छप्पय
आसै बारठ एक
अवन पथ पाल्यो आदू।
दीतावत दुनियांण,
गोमँद नै गायो गादू।
गुण निरंजण परांण,
अलख री कथा उकेरी।
लक्ष्मणायण भल लिख,
भोम ली क्रीत भलेरी।
हद भजन हरफ लिखिया हरख,
अख गल्ला अवधेस री।
पावनं दिशा पिछमांण पुणां,
भोम भली भादरेस री।।6

 ईसर हर हर उचर,
रांम अठजांम रिझायो,
सूरावत बल़ सांम,
नांम निकलंक कमायो।
अरस-परस प्रभु आप,
दरस रोहड़ नै दीधा,
पात जिकण रै पांण,
काज सुखियारथ कीधा।
भव तणा फंद जिण भांजिया,
गोमँद निसदिन गावियो।
भांणवां छात बल़ भजन रै,
पद परमेसर पावियो।।7

हुवो कवि घर हेम,
अखां इम कवियो अलू।
 जसरांणै की जोर,
भांत बोह गल्ला भलू।
छट्टा छप्पय छंद,
विमल़ कथ भजन बिखेरी।
सगुण निगुण इक सार,
हिये मँड मूरत हेरी।
दिल दांम कांम तजिया दुरस,
रांम नांम नित रेरियो।
इल़ बीच अलू हुइयो अमर,
टीकम नै जिण टेरियो।।8

सकव बडो सदमाल,
छींडिये गाडण छोगो।
दाखां केसोदास,
जिकण घर कवियण जोगो।
सबदां अरथ सतोल,
विमल़ कव कायब वाणी,
वरदायक वेदांत,
निमल़ जिण कथी निसाणी।
आखरां पांण अवनी अमर,
बदनन चिंता वेश री।
ग्यान नै ग्रहण गाडण रटी,
महिमा सदा महेस री।।9

 मांडण भो मतिमान,
बडो गाडण गुणधारी।
सधर सदा सुभियांण,
मुणी जिण कथा मुरारी।
रिदै राख रच रांम,
जगत रा तजिया जाल़ा।
मोह माया मद दूर,
मुकँद री फेरी माल़ा।
पाप रा फंद तोड़्या प्रगट,
धुर उर वीठल़ धारियो।
गीधिया साच सुणजै गुणी,
सत बल़ जनम सुधारियो।।10

कवियण करमाणद,
जात मीसण जग जांणै।
सांमल़ियो नित सुमर,
अंजस अँतस में आंणै।
परहित कारण पेख,
दुरस जिण दाख्या दूहा।
जिकै गया जग जीत,
वाट जो कहियै बूहा।
प्रभु नांम तणो परताप ओ,
अखी नांम धर पर अजै।
गुण जांण असर कवी गीधिया,
भगवत नै क्यूं नीं भजै।।11

मेहडू महियल़ मोट
गोदड़ हुवो गुणगांमी।
अहरनिसा उर आप,
नांम रटियो घणनांमी।
द्वेष राग सूं दूर,
धेख नको मन धारी।
जांणी चारण जिकै,
भजन री ताकत भारी।
अवचल सुजाव अविचल़ सदा,
रटियो नितप्रत रांम नै।
इहलोक अनै परलोक उण,
कियो अमर जिण कांम नै।।12

हुवो भल़ै हरदास,
जीभ जपण जगजांमी।
बोगनियाई वास,
विदग वडो वरियांमी।
आखर कवि अमाम,
जिकै मुख साकर जोड़ै।
पढ़ै ऊठ परभात,
तिकां तन पातक तोड़ै।
सिरै भगत कवियण पण सिरै,
जग जाहर  बातां जको।
सत गीध बात मनजै सही,
नांम समोवड़ है नको।।13

जैतै रै घर जोय,
देख दूथी दधवाड़ै।
मांडण भगत मुरार,
गढव वडो गढवाड़ै।
मांडण रै घर मांय,
चवां कवि मोटम चूंडो।
निमँधाबँध जिण नांम,
आखियो ग्रंथस ऊंडो।
छँद भाव छटा छौल़ां लहै,
माठा करमज मेटणा।
शुद्ध रिदै चाव सँभलै सही,
भगवत रो मग भेटणा।।14

चावो चरपटनाथ,
जोग जिण जबर कमायो।
मोह मछर तज मुदै,
महि महादेव मनायो।
नवनाथां में नांम,
सकल़ में आज सुणीजै।
जग गोरख रै जोड़,
गुमर रै साथ गिणीजै।
ग्यांन रै पांण अघ  गंजिया,
ध्यांन रिदै हर धारियो।
चेलकां तार चित ऊजल़ै,
तिण   निज कुल़ नै तारियो।।15

महियल़ माधोदास,
चूंड तनय  बसू चावो।
देवगुणां दुनियांण,
ठीक महाभट्ट ठावो।
असमर एकै आच
कलम दूजै पण कहिये।
परहित मोटै पात,
वीरगत समहर वरिये ।
रामरासो रच रातदिवस,
रटियो जस रस रांम रो।
गीधिया साच मनजै गुणी,
नित बल़ राख्यो नांम रो।।16

नरहर नांमी नांम,
मही रोहड़ मुगटामण।
अवतारां जस आख,
अवन ली कीरत अण-मण।
बहुभाषी विद्वान ,
अकल रो कहिये आगर।
भरियो जिण बहुभांत,
गुणी सागर नै गागर।
लखपत सुजाव लखमुख लियो,
भल जस भगती भाव सूं।
गीधियां मान ज्यांरो गुणी,
चवजै गुण तूं चाव सूं।।17

 कहियै सिरहर कोल्ह,
विदग बावली वासी।
चौराड़ां चहुंकूट,
सुजस लीधो सुखरासी।
दूथी जिण धर देख,
गाढ धर हरिगुण गायो।
धिनो द्वारकाधीस,
राग इक टेर रिझायो।
कांनड़ै बात करी कहूं
पात मनोरथ पूरती।
गीधिया दरस करजै गुणी,
मंदर साखी मूरती।।18

टेलै बारठ तेज,
ईहग बडो अजबांणी।
तांमझांम सह त्याग,
बोलियो इमरत वांणी।
घट में रख घनश्यांम,
अवर  सह रखिया आगा।
तिण कीनी तप तांण,
जबर आगीनै जागा।
महि बात अजै शुद्धमन मनै,
जव रो फरक न जांणजै।
सुण गल्लां इयै कवि गीधिया,
उरां भरोसो आंणजै।।19

 सांई रो सेवग्ग,
जोर सांईयो झूलो।
त्रिकम वाल़ी टेर,
भगत पल हेक न भूलो।
जिणरी काढी जोय,
चतुरभुज हाथां चांटी।
सज लायो लद सांढ,
छती जिण आसण छाटी।
नागदमण उण रचियो निमल़,
 पाठ घरोघर घण करै।
गीधिया साच मनजै गुणी,
धुर तूं चरणां चित धरै।।20

जुढिये लाल़स जोय,
परभु रो चाकर पीरो।
इणमें मीन न मेख,
हुवो जाती में हीरो।
अलख दिसा अरदास,
दास उर निर्मल़ दाखी।
धिन गुरु ईसर धार,
रुची जस राघव राखी।
थल़ धरा थंभ भगती तणो,
थिर कर रेणव थप्पियो।
जग जाल़ पीर परहर जबर,
जगदीसर नै जप्पियो।।21

 रतनू हुवो हमीर,
घरै गिरधरण घड़ोई।
गुणी धरा गुजरात,
परभु जसमाल़ पिरोई।
अमर भयो इल़ आप,
रची रचनावां रूड़ी।
लीधो जस कव लाट,
कहूं इक बात न कूड़ी।
सर्वधर्म एको सदभावना,
जिणरो कायब जोयलै।
कर पाठ गीध नितप्रत कवी,
हेतव शुद्धमन होयलै।।22

वीरभांण विखियात,
मही कव मुरधर मोटो।
तिण सह बातां त्याग,
ईस रो ग्रहियो ओटो।
मुरधरपत अभमाल,
रसा रतनू नै रीधो।
मेदपाट नै माड,
कुरब महपतियां कीधो।
हरभजन कियो जिण हर समै,
वरी अमरता बेखलो।
घट्ट संक बिनां कहै गीधियो,
पंगी चहुंवल़ पेखलो।।23

वीठू ब्रहमादास,
पात माड़वै पोढी।
दादूपँथ री देख,
अंग जिण चादर ओढी।
भगतमाल़ जिण भाख,
मुणी भगतां री महिमा।
आखरियां अजरेल,
गाय गोमँद री गरिमा।
पिछम सूं पूर्ब इक मन पढै,
आ वाणी आनंद री।
ऊपजै गीध गुण ईश री,
छौल़ां हिरदै छंद री।।24

विदग विणलिये बास,
भई ओ रतनू भीखो।
गाया गीत गँभीर,
जगत जाहर जस जीको।
सरस पढण में सार,
सको इकसार अतोला।
जड़िया नीती नग्ग,
आखरां भाव अमोला।
जनलाभ गीध आखर जिकै,
जगदीसर रै जाप रा।
मनधार मिनख पढसी मुदै,
प्रजल़सी फंद पाप रा।।25

 देथो मथुरादास,
परम चरणां में पासो।
धरण निवासी धाट,
रच्यो कव राघव रासो।
राम कथा कह रुचिर,
जथा पण भगती जाझी।
खरी कमाई खाय,
सुरग री वाटां साजी।
नरदेह करी निकलंक जिण,
नहीं कियो कज नांनियो।
गीधिया साच सुणजै गुणी,
मही धिनोधिन मांनियो।।26

 नांमी ब्रहमानंद,
भजन कीधो बडभागी।
स्वामी री ले शरण,
अपड़ चरणां अनुरागी।
गुरु सूं पायो ग्यांन,
सधर कीधी सतसंगत।
डींगल़ पींगल़ दुरस,
पात विद्या पारंगत।
शंभु रै सदन सुत आसियो,
खरो रतन नर खांण रो।
चतरपांण गीध शरणो चहै,
बरणै कवत  बखांण रो।।27

 चव कवियो चिमनेस,
वाह वाणी वरदायक।
नेस बिराई निपट
 हुवो लुदरावत लायक।
हरि सूं करनै हेत,
गड़ै तपियो गुणधारी।
किरता री रच कथा,
सही नरदेह सुधारी।
सिद्ध पुरस मनै थल़ सांपरत,
भला दरस कर भाव सूं।
कर जीभ पवित गिरधर सकव,
चरित बांचजै चाव सूं।।28

 बारठ कान्हो वल़ै,
 टेर हर काया तपतो।
लागी इक ही लगन,
 जदै मुख राघव जपतो।
कथिया गीत कवत्त,
इष्ट आधार अराधै।
गूंथ्यो ग्यांन गहीर,
सुपथ भगती रो साधै।
मोह नै मेट माया तजी,
मद नै रद कर मारियो।
रांम रो नांम गिरधर रसा, 
ईहग इयै उचारियो।।29

नितां नम्यो नारांण,
 पात सदा हरी पायक।
जांण जीवाणँद जेम,
 गुणां गोमँद रो गायक।
दूदो फेरूं देख,
 सदा हरभजन सुणाया।
सकवी सिवो सुफेर, 
करी निरमल़ इम काया।
चौमुख अनै चोल़ो चवां, 
रांम नांम नित रेरियो।
मानजै गीध पाछो मुरड़, 
घोटो जम रो घेरियो।।30

उतन बल़ूंदै एक,
ईहग दधवाड़्यो ईसर।
जोड़ी जिण कव जोर,
प्रीत री डोर प्रमेसर।
राखी आदू रीत,
गढव बड आप घरांणै।
सुज माल़ा में सार,
मांन धिन मसती मांणै।
निसदिवस नांम सूं नेहधर,
पात मनोरथ पूरिया।
गीधिया बात आंरी ग्रहण,
कारज तजदे कूड़िया।।31

संतदास सिरमोड़,
पंथ गूदड़ियां पेखो।
आढो ओपो अवर, 
लियो रघु-नाम सुलेखो।
रतनू परसारांम, 
मुणी जिण भगतां- माल़ा।
कटिया माठा करम,
अगै दिन हुवा उजाल़ा।
जसकरण नाम हर हर जप्यो, 
मही रतनू धिन माढ रै।
गीधिया वरण अंजस गहर, 
चाव भाव चित चाढ रै।।32

अरबद री इल़ एक,
 सांवल़ आसो सुणीजै।
नेस फैदांणी नांम,
कवी जो भगत कहीजै।
सांदू रायांसिंघ, 
मही हुइयो मिरगेसर।
पढ माल़ा परताप,
ऐह राजी अवधेसर।
नीत तणा नग जगमग जड़्या,
साख सोरठा है सही।
कवि गीध इणां नितप्रत कह्यो,
नांम समोवड़ को नहीं।।33

चावो चुत्तरदास,
बास तपियो बूटाटी।
जिकै तपोबल़ जोर,
केतलां विपत्ति काटी।
सांगड़िये सदुराम, 
कठण तप जोग कमायो।
कह गाडण कलियांण, 
सरस मन नाथ सरायो।
सांम रा दास मांनै सकल़, 
साखा जग भरवै सही।
सुभियांण गीध सरणो सदा, 
कव ज्यांरो उत्तम कही।।34

वड देथां रै वंश, 
सिम्मर  सरूपो सांमी।
लिवना में हुय लीन,
नितां जपियो घणनांमी।
चावो चारणवास,
   क्रीत पदमावत पांमी।
गुणियण नाम गुणेश, 
वाह बारठ वरियांमी।
सत्त री परख कीधी सही, 
मन तन सांसो मेटियो।
गीधिया बात साची गिणै, 
भगवत आंनै भेटियो।।35

सकव बडो सिवदान, 
भू तपियो भादरेसो।
बायां ठांभी व्योम, 
अवन कियो तप ऐसो।
सकव सरवड़ी साच, 
बोगसो ईसर बेखो।
रटियो मुख दिन-रात, 
पात परमेसर पेखो।
गीधिया साच गिणजै गुणी, 
भगत वडा भू ऊपरै।
जाप रै पांण इण जगत में, 
तारै पापी खुद तरै।।36

भाषा भारथ भाल़, 
कविवर भारथ कीधी।
ईंटदडै अखियात, 
लाट जग कीरत लीधी।
बुधसिंह वरियांम, 
विदग मोगड़ै वाल़ो।
देवी रो जस देख, 
उरां मंझ कियो उजाल़ो।
काग रै नाम कंठ कोकला, 
देख भगत धिन दूलियो।
गीधिया जिको निज री गिरा, 
भगवत नै नीं भूलियो।।37

जोगो लाल़स जोर
जको जुढिये धर जाणो।
निकलंक नाथूरांम,
बात दिल खोल बखाणो।
कूड़ तणी जड़ काट,
साच जिण रिदै समाई।
महियल़ उणरी मदत,
सदा रहियो धिन सांई।
गीधिया साच मनजै गुणी,
इयै नरां धिन आपजै।
कीरती जेम किरतार री ,
ज्यूं आंरी मुख जापजै।।38

जगै लीनी हद जोय, 
खूब खिड़िये जग ख्याती।
रख हिरदै नित रांम, 
जिकै की ऊजल़ जाती।
मंगल़रांम महि माथ, 
पंथ दादू अपणायो।
पुनी श्रद्धा रै पांण,
 राग कर नाथ रिझायो।
रांम री धीव सम्मान रँग, 
कवियांणी नांमो कियो।
गीधिया टेर गोविंद गुण, 
लाट धरा जस युं लियो।।39

मोह द्रोह तज मछर, 
तिकां ममता जग त्यागी।
रांम नांम मुख रेर, 
जिकां लिवना हिक जागी।
ऐस भोग आरांम,
 गहर ज्यां पातक गिणिया।
सांम तणी ले शरण, 
माल़ गिड़काया मिणिया।
ऊजल़ो वंश कीधो अवन, 
काया ज्यां निकलँक करी।
गीधिया साच मांनै गुणी, 
हेले हाजर हो हरी।।40

कियो न कदै अकांम,
हांम पूर्ण प्रभु हेर्यो।
जिकां जाप अठजांम,
रांम नांम मुख रेर्यो।
करी न बातां कूड़,
रंच उर घात न राखी।
ज्यांरी अजतक जोय,
सुजस धजा जग साखी।
ऐहड़ा रतन हुइया अगै,
ईहग वरण उजाल़वा।
एक ई काज कीधो अटल़,
पह पथ भगती पाल़वा।।41
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनका परिचय

राजस्थान का एक भी जिला मुगलों के नाम पर नहीं हैं और शेष भारत में ढेरों हैं....!!

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनके नाम हैं..._
01) गंगानगर
02) बीकानेर
03) जैसलमेर
04) बाडमेर
05) जालोर
06) सिरोही
07) उदयपुर
08) डूंगरपुर
09) बांसवाड़ा
10) प्रतापगढ़
11) चित्तौड़गढ़
12) झालावाड़
13) कोटा
14) बारां
15) सवाईमाधोपुर
16) करौली
17) धौलपुर
18) भरतपुर
19) अलवर
20) जयपुर
21) सीकर
22) झुंझुनू
23) चूरु
24) भीलवाड़ा
25) हनुमानगढ़
26) नागौर
27) जोधपुर
28) पाली
29) अजमेर
30) बूंदी
31) राजसमंद
32) टोंक
33) दौसा.!!

कृपया इन नामों पर ध्यान दीजिए, नाम से ही पता चलता है कि राजपूतों ने क्या और कैसे किया.....

*अब जिलों का परिचय:-*

*अजमेर* :- अजमेर 
27 मार्च 1112 में चौहान राजपूत वंश के  तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया...!!

*बीकानेर* :- बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश
राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा.!!

*गंगानगर* :- महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा.!!

*जैसलमेर* :- जैसलमेर
महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया.!!

*उदयपुर* :- महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा..!!

*बाड़मेर* :- बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया.!!

*जालौर* :- जालौर की नींव 10वी  शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई! बाद में चौहान राठौड़, सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया..!!

*सिरोही* :- राव सोभा जी के 
पुत्र शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी 
उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी में वैशाख के दूसरे दिन द्वितिया पर सिरोही किले की नींव रखी..!!

*डूंगरपुर* :- वागड़ के राजा डूंगरसिंह ने ई.1358 में डूंगरपुर नगर की स्थापना की! बाबर के समय में उदयसिंह वागड़ का राजा था जिसने मेवाड़ के महाराणा के संग्रामसिंह के साथ मिलकर खानुआ के मैदान में बाबर का मार्ग रोका था..!!

*प्रतापगढ़* :- प्रताप सिंह महारावत ने बसाया..!!

*चित्तौड़*:- स्वाभिमान शौर्य त्याग वीरता राजपुताना की शान! 
चित्तौड़ सिसोदिया गहलोत वंश ने बहुत शासन किया ! बप्पा रावल महाराणा प्रताप सिंह जी यहाँ षासन किया..!!

*हनुमानगढ़* :- भटनेर दुर्ग 285 ईसा में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह भाटी ने बनवाया इस लिए इसे भटनेर कहाँ जाता हैं! मंगलवार को दुर्ग की स्थापना होने कारण हनुमान जी के नाम पर हनुमानगढ़ कहाँ जाता हैं..!!

*जोधपुर* :- राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. में आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की.!!

*राजसमंद* :- शहर और जिले का नाम मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में निर्मित एक कृत्रिम झील! राजसमन्द झील के नाम से लिया गया हैं..!!

*बूंदी* :- इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की
कहा जाता हैं कि बून्दा मीणा ने बूंदी की स्थापना की थी तभी से इसका नाम बूंदी हो गया..!!

*सीकर* :- सीकर जिले को वीरभान ने बसाया ओर वीरभान का बास सीकर का पुराना नाम दिया.!!

*पाली* :- महाराणा प्रताप की जन्मस्थली एवं महाराणा उदयसिंह का ससुराल हैं पाली मूलतया पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया हैं.!!

*भीलवाड़ा* :- किवदंती हैं कि इस शहर का नाम यहां की स्‍थानीय जनजाति भील के नाम पर पड़ता हैं! जिन्‍होंने 16वीं शताब्‍दी में अकबर के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की मदद की थी! तभी से इस जगह का नाम भीलवाड़ा पड़ गया..!!

*करौली* :- इसकी स्‍थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहाँ जाता हैं कि वे भगवान कृष्‍ण के वंशज थे.!!

*सवाई माधोपुर* :- राजा माधोसिंह ने ही शहर बसाया और इसका नाम सवाई माधोपुर दिया..!!

*जयपुर* :-जयपुर शहर की स्थापना सवाई जयसिंह ने 1727 में की सवाई प्रताप सिंह से लेकर सवाई मान सिंह द्वितीय तक कई राजाओं ने शहर को बसाया..!!

*नागौर* :- नागौर दुर्ग भारत के प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाये गये दुर्गों में से एक हैं! माना जाता हैं कि इस दुर्ग के मूल निर्माता नाग क्षत्रिय थे! नाग जाति महाभारत काल से भी कई हजार साल पुरानी थी! यह आर्यों की ही एक शाखा थी तथा ईक्ष्वाकु वंश से किसी समय अलग हुई..!!

*अलवर* :- कछवाहा राजपूत राजवंश द्वारा शासित एक रियासत थी। जिसकी राजधानी अलवर नगर में थी
रियासत की स्थापना 1770 में प्रभात सिंह प्रभाकर ने की थी..!!

*धौलपुर* :- मूल रूप से यह नगर ग्याहरवीं शताब्दी में राजा धोलन देव ने बसाया था! पहले इसका नाम धवलपुर था
अपभ्रंश होकर इसका नाम धौलपुर में बदल गया..!!

*झालावाड़* :- झालावाड़ गढ़ भवन का निर्माण राज्य के प्रथम नरेश महाराजराणा मदन सिंह झाला ने सन 1840 में करवाया था..!!

*दौसा* :- बड़गूजरों द्वारा करवाया गया था! बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया..!!


 🙏🙏

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ठंड पडे़ है ठाकरां...



ठंड पडे़ है ठाकरां , काठा पहनो कोट ।
दूध गटकाओ रात में,रंजर जीमो रोट॥

ठंड पडे है जोरकी,पतली लागे सौड़।
चाय पकौड़ी मूंफली, इण सर्दी रो तोड़ ॥

डांफर चाले भूंडकी ,चोवण लाग्यो नाक ।
कांमल राखां ओडके,सिगडी तापां हाथ ॥

काया धुझे ठाठरे, मुँडो छोडे भाफ ।
दिनुगे पेली चावडी, नहानो धोनो पाप ॥

गूदड़ माथे गुदड़ा , ओढंया राखो आप ।। 
ताता चेपो गुलगुला , चाय पिओ अणमाप।।। 

आप सबां ने सियाले री खम्मा घणी सा

अमर सिंह राठौड़ (नागौर के राजा)

भरे दरबार मे शाहजहाँ के साले सलावत खान ने अमर सिंह राठौड़ (नागौर राजा) को हिन्दू और काफ़िर कह कर गालियाँ बकनी शुरू की और सभी मुगल दरबारी उन गालियों को सुनकर हँस रहे थे!
अगले ही पल सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका ...!
शाहजहाँ कि सांस थम गयी। इस 'शेर' के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे. अफरा तफरी मच गयी, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे. मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे.
अमर सिंह अपने घोड़े को किले से कुदाकर घर (नागौर) लौट आये.
शारजहाँ ने हुए इस अपमान का बदला लेने हेतु अमर सिंह के विश्वासी को नागौर भेजा और सन्धि प्रस्ताव हेतु पुनः दरबार बुलाया. अमर सिंह विश्वासी की बातों में आकर दरबार चले गए.
अमर सिंह जब एक छोटे दरवाज़े से अंदर जा रहे थे तो उन्ही के विश्वासी ने पीछे से उनपर हमला करके उन्हें मार दिया ! ऐसी हिजड़ों जैसी विजय पाकर शाहजहां हर्ष से खिल उठा.
उसने अमर सिंह की लाश को एक बुर्ज पे डलवा दिया ताकि उस लाश को चील कौए खा लें.
अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के
बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से  अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !
उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया।
महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !
बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।
      बल्लूजी को अपनें मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी,दोनों हाथों से
तलवार चला रहे थे ! उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक उनके पीछे थे
जिनकी लाशें गिरती जा रही थीं और उन लाशों पर से बल्लूजी आगे बढ़ते जा रहा थे !
वह मुर्दों की छाती पर
होते बुर्ज पर चढ़ गये और अमर सिंह की लाश उठाकर अपनें कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाते हुवे घोड़े पर उनकी देह को रखकर आप भी बैठ गये और सीधे घोड़ा दौड़ाते हुवे गढ़ की बुर्ज के ऊपर चढ़ गए और घोड़े को नीचे कूदा दिया ! नीचे मुसलमानों की सेना आने से पहले बिजली की भाँति अपने घोड़े सहित वहाँ पहुँच चुके थे
जहाँ रानी चिता सजाकर तैयार थी !
अपने पति की देह पाकर वो चिता में ख़ुशी ख़ुशी बैठ गई !
सती ने बल्लू जी को आशीर्वाद दिया- 'बेटा ! गौ,ब्राह्मण,धर्म और सती स्त्री की रक्षा
के लिए जो संकट उठाता है,
भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। आपनें आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। आपका यश
संसार में सदा अमर रहेगा।' बल्लू चम्पावत मुसलमानों से लड़ते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे उनका दाहसंस्कार
यमुना के किनारे पर हुआ उनके और उनके घोड़े की याद में वहां पर स्म्रति स्थल बनवाया गया जो अभी भी मौजूद है !

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

दाल बाटी का आविष्कार कैसे हुआ

दाल बाटी का आविष्कार कैसे हुआ 

बाटी मूलत: राजस्थान का पारंपरिक व्यंजन हैै। इसका इतिहास करीब 1300 साल पुराना है ।   8 वीं सदी में राजस्थान में बप्पा रावल ने मेवाड़ राजवंश की शुरुआत की। बप्पा रावल को मेवाड़ राजवंश का संस्थापक भी कहा जाता है। इस समय राजपूत सरदार अपने राज्यों का विस्तार कर रहे थे । इसके लिए युद्ध भी होते थे ।

इस दौरान ही बाटी बनने की शुरुआत हुई । दरअसल युद्ध के समय हजारों सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण काम होता था। कई बार सैनिक भूखे ही रह जाते थे। ऐसे ही एक बार एक सैनिक ने सुबह रोटी के लिए आटा गूंथा, लेकिन रोटी बनने से पहले युद्ध की घड़ी आ गई और सैनिक आटे की लोइयां रेगिस्तान की तपती रेत पर छोड़कर रणभूमि में चले गए। शाम को जब वे लौटे तो लोइयां गर्म रेत में दब चुकी थीं, जब उन्हें रेत से बाहर से निकाला तो दिनभर सूर्य और रेत की तपन से वे पूरी तरह सिक  चुकी थी। थककर चूर हो चुके सैनिकों ने इसे खाकर देखा तो यह बहुत स्वादिष्ट लगी। इसे पूरी सेना ने आपस में बांटकर खाया। बस यहीं इसका आविष्कार हुआ और नाम मिला बाटी। 

इसके बाद बाटी युद्ध के दौरान खाया जाने वाला पसंदीदा भोजन बन गया। अब रोज सुबह सैनिक आटे की गोलियां बनाकर रेत में दबाकर चले जाते और शाम को लौटकर उन्हें चटनी, अचार और रणभूमि में उपलब्ध ऊंटनी व बकरी के दूध से बने दही के साथ खाते। इस भोजन से उन्हें ऊर्जा भी मिलती और समय भी बचता। इसके बाद धीरे-धीरे यह पकवान पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया और यह कंडों पर बनने लगा।

अकबर के राजस्थान में आने की वजह से बाटी मुगल साम्राज्य तक भी पहुंच गई। मुगल खानसामे बाटी को बाफकर (उबालकर) बनाने लगे, इसे नाम दिया बाफला। इसके बाद यह पकवान देशभर में प्रसिद्ध हुआ और आज भी है और कई तरीकों से बनाया जाता है। 

अब बात करते हैं #दाल की। दक्षिण के कुछ व्यापारी मेवाड़ में रहने आए तो उन्होंने बाटी को दाल के साथ चूरकर खाना शुरू किया। यह जायका प्रसिद्ध  हो गया और आज भी दाल-बाटी का गठजोड़ बना हुआ है। उस दौरान पंचमेर दाल खाई जाती थी। यह पांच तरह की दाल चना, मूंग, उड़द, तुअर और मसूर से मिलकर बनाई जाती थी। इसमें सरसो के तेल या घी में तेज मसालों का तड़का होता था। 

अब #चूरमा की बारी आती है। यह मीठा पकवान अनजाने में ही बन गया। दरअसल एक बार मेवाड़ के गुहिलोत कबीले के रसोइये के हाथ से छूटकर बाटियां गन्ने के रस में गिर गई। इससे बाटी नरम हो गई और स्वादिष्ट भी। इसके बाद से इसे गन्ने के रस में डुबोकर बनाया जाना लगा। 
मिश्री, इलायची और ढेर सारा घी भी इसमें डलने लगा। बाटी को चूरकर बनाने के कारण इसका नाम चूरमा पड़ा।

           

बुधवार, 17 जून 2020

राष्टगान में राजस्थान का नाम क्यों नही ?

सवाल:::राष्टगान में राजस्थान का नाम क्यों नही
  (उत्तर::यह गौरव की बात है) 
  (क्योंकि राजपूताना अंग्रेजो का गुलाम नही था)

सर्वप्रथम यह गान 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था,जिसमे ब्रिटेन के राजा "जार्ज पँचम" मुख्य अथिति थे.....इस गान में राजा जार्ज पँचम को ही अधिनायक (सुपर हीरो) और "भारत का भाग्य विधाता" कहा गया था.
**28 दिसम्बर 1911 को कलकत्ता के अंग्रेजी दैनिक "The English man" अखबार ने यह कहा की यह "गीत ब्रिटेन के राजा जार्ज पँचम" के लिए खुशामदी में गाया गया था.
**इसके बाद कांग्रेस और रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत आलोचना हुई थी.
**लोगो ने रवींद्रनाथ टैगोर से इस पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही परन्तु वे चुप रहे.
**सन 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को "नोबेल पुरस्कार मिला था....यह पुरुस्कार उसी अधिनायक की कृपा से मिला....ऐसा लोगो का आरोप है.
**संविधान सभा ने जन-गण-मन हिंदुस्तान के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। 
(इस राष्ट्रगान में पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगाल एवं विन्ध्या हिमाचल प्रदेशो के नाम है,तथा यमुना और गंगा दो नदियों के नाम है.......परन्तु राजपुताना (राजस्थान) का नाम कंही नही है)

::::::::::::::::::::::सवाल:::जबाब ::::::::::::::::::::::::
***राजपुताना(राजस्थान) का नाम क्यों नही***

(1)दरअसल यह गीत ब्रिटेन के राजा जार्ज पँचम के गुणगान में गाया गया था....जो "ब्रिटिश इंडिया" के अधिनायक/शासक थे.
(2)जैसा कि सर्व विदित है #राजपुताने (राजस्थान) की सभी रियासते "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" थी....वो ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा नही थी.
" सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" का मतलब:- 
#राजपुताना (राजस्थान) के सभी राजा "हिज हाईनेश" कहलाते थे.... तथा जब भी ये राजा दिल्ली सरकारी यात्रा पर जाते थे तो उनको "तोपो की सलामी" दी जाती थी....तथा "लाल कालीन" बिछाया जाता था.
जैसा कि विदित है "हिज हाईनेश" शब्द तथा "तोपो की सलामी" विदेशी शासक जब भारत की यात्रा में आता है तो यह सम्मान दिया जाता है.
(4)भारत की सभी 562 रियासतों में से सिर्फ 108 रियासते "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" की श्रेणी में आती थी....राजस्थान के सभी के सभी राजा "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" केटेगरी में थे.
(5)इन राजाओ से ब्रिटेन ने सन 1818 में जो संधि की थी, वह सिर्फ विदेश नीति के मामले तक मे थी.
(6)"सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" के अंदरूनी मामलों पर ब्रिटेन का कोई हस्तक्षेप नही था.....राजपुताना (राजस्थान) की सभी 22 रियासतें खुद अपने आप मे Governments थीं.
जैसे:-
Government of JODHPUR
Government of JAIPUR
Government of UDAIPUR
Government of BIKANER
Government of KOTA
Government of BUNDI
Government of SIROHI
Government of BHARATPUR
आदि ...इस तरह सब
(8)राजपुताना(राजस्थान)में ब्रिटिश इंडिया के कानून नही चलते थे....प्रमाण के लिये स्टेट टाइम का कोई भी सरकारी कागजात आपके घर मे पड़ा हो तो चेक कर लेंवे.
(9)जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल,बिहार, पंजाब,महाराष्ट्र, गुजरात,सिंध आदि "ब्रिटिश इंडिया" का हिस्सा थे.
(10)जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए थे.....तब उन्होंने सिर्फ "ब्रिटिश इंडिया" को आजाद किया था..."प्रिंसली स्टेट"को नही...अंग्रेजों ने राजाओ से जो सन्धि सन 1818 में की थी उसको रद्द करके गए थे.
(11)1947 में सभी प्रिंसली स्टेज के राजा पुनः सपूर्ण अधिकार से सम्प्रभुता संपन्न शासक हो गए थे.....वह स्वतंत्र थे चाहे भारत मे मिले या पाकिस्तान में या स्वतंत्रत रहे.
:::::::::यही कारण है की ::::राष्टगान में राजस्थान का नाम नही है ::::::::
(1)जब "सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" ब्रिटेन के अधीन थी ही नही ....तो फिर राष्टगान में नाम नही लिख सकते थे.....क्योंकि इन स्टेट के भाग्यविधाता इनके राजा थे....न कि जार्ज पंचम.
(2)उस वक्त हर प्रिंसली स्टेट का खुद का "राष्टगान" तथा झण्डा होता था.
जैसे जोधपुर स्टेट का राष्टगान था ...
"धूंसो बाजे छे महाराजा थारो मारवाड़ में...."
तथा
ध्वज :"पंचरंगा" झंडा था....जो अभी भी किले और "उम्मेद भवन" पर लगा हुआ है.

अतः राष्टगान में राजस्थान का नाम नही होना गौरव की बात थी....क्योंकि राजपुताना (राजस्थान) अंग्रेजों का गुलाम नही रहा....
जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल,बिहार, पंजाब,महाराष्ट्र, गुजरात,सिंध आदि राज्य "ब्रिटिश इंडिया" का हिस्सा थे और अंग्रेजों के गुलाम थे।

अमर सिंह चौहान

मंगलवार, 19 मई 2020

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

- किण सूं भी सीधे मूंडै बात नही करणी।
- भूसाघड़ जी नै भी मूंडै नही लगावणो।
- असींदो मिनख देखतां ई मूंडो फेर लेवणो।
- नरम हुवण री जरूरत कोणी, अकड़ियोडो छोडो व्हे ज्यूं रेवणो।
- किणनै ई नैड़ो नी फटकण देवणो।
- बिना मूमती बांधियाँ कोई दीसे तौ दो ठोला धरणा।
- जै कोई छींकण नै मूंडो ऊंचो करे फट आगौ हू जावणो।
- फूट लै, आगो बळ सबदां रौ जादा सूं जादा प्रयोग करणो।
- दीनुगै चरचरे पाणी रा कम सूं कम दो गिलास अरोगणा।
- तुलछी, अदरक, लूंग, पोदीणौ  चेपण माथै जोर राखणो।

इत्ती हावचेती राख ली तौ कोरोणा रा दा'जी भी थारों कीं नी बिगाड़ सकै। बाकी थांरली मरजी। थै जाणो नै थारां काम।

सोमवार, 18 मई 2020

संत पीपा

संत पीपा जी का जन्म 1426 ईसवी में राजस्थान में कोटा से 45 मील पूर्व दिशा में गगनौरगढ़ रियासत में हुआ था।
इनके बचपन का नाम राजकुमार प्रतापसिंह था और लक्ष्मीवती इनकी माता थीं।
पीपा जी ने रामानंद से दीक्षा लेकर राजस्थान में निर्गुण भक्ति परम्परा का सूत्रपात किया था।
दर्जी समुदाय के लोग संत पीपा जी को आपना आराध्य देव मानते हैं।
बाड़मेर ज़िले के समदड़ी कस्बे में संत पीपा का एक विशाल मंदिर बना हुआ है, जहाँ हर वर्ष विशाल मेला लगत है। इसके अतिरिक्त गागरोन (झालावाड़) एवं मसुरिया (जोधपुर) में भी इनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है।
संत पीपाजी ने "चिंतावानी जोग" नामक गुटका की रचना की थी, जिसका लिपि काल संवत 1868 दिया गया है।
पीपा जी ने अपना अंतिम समय टोंक के टोडा गाँव में बिताया था और वहीं पर चैत्र माह की कृष्ण पक्ष नवमी को इनका निधन हुआ, जो आज भी 'पीपाजी की गुफ़ा' के नाम से प्रसिद्ध है।
गुरु नानक देव ने इनकी रचना इनके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की थी। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव ने 'गुरु ग्रंथ साहिब' में जगह दी थी।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मन तुं धीरज धार

 मन तुं धीरज धार

पांखां सांधी पंखियां, 
उड़िया दरिया पार।
रुत वळ्या आसी वळै,
मन तू धीरज धार।।१।।

पंछी ने उड़ान भरी, दरिया के पार चला गया।
मौसम बदलने पर अवश्य लौटेगा हे मन तुं धैर्य रख।।

संगी साथी रूठिया, 
तोड़े दिल रा तार।
नेह बध्या फिरि आवसै,
मन तुं धीरज धार।।२।।

स्वजन यदि रूठ कर मन से रिश्ता तोड़ने पर उतारू हो जाय,
लेकिन स्नेह का बंधन उन्हें वापस ले आएगा हे मन तुं धैर्य रख।।

बखत बावळो देखकर, 
चुप रहवा में सार।
आसो बख्त आसी अवस, 
मन तुं धीरज धार।।३।।

खराब समय मे चुप रहना ठीक,
अच्छा समय अवश्य आएगा,धैर्य रखें।

डगमग तरणी डगमगै,
पकड़ हाथ पतवार।
तारण वाळो तारसी,
मन तुं धीरज धार।।४।।

नाव डगमगा रही है पर तुं मजबूती से पतवार थाम, ईश्वर अवश्य ही तूफान से पार उतारेगा धैर्य रख।।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

साच दोल़ा तो ताल़ा छै

साच  दोल़ा तो ताल़ा छै।
मिनक्यां रै हाथां माल़ा छै।।

रंगियोड़ै घूमै स्याल़   गल़्यां 
हुकी  !हुकी !अर चाल़ा छै।।

भरमजाल़ में भोल़ा-ढाल़ा,
जीभ धूतां  रै  जाल़ा  छै।।

रागा  अनै  वैरागा  सरखा। 
घर -घर कागा  काल़ा छै।।

जात -जात रा न्यारा झंडा।
गल़  मिनखां  रै  टाल़ा छै।।

चढ -चढ आवै भीर बावल़ा।
पंच  जावता  पाल़ा  छै।।

लोकतंत्र  रो  हाको-हूको।
राजतंत्र रा ढाल़ा  छै।।

कुए वायरै जहर घोल़ रह्या।
मन -मन आडा गाल़ा छै।।

हाव-भाव सूं मती ठगीजो।
सह  नागां  रा साल़ा छै।।

बहै अराड़ा हेत हबोल़ा।
ऐ  बरसाती  नाल़ा  छै।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

महाराणा प्रताप की जीवनी

जिंदगी में कदे हताश हो जाओ, चारू मेर निराशा ही दिखे, कदम कदम पर असफलता मिले, या जिंदगी स्यु एलर्जी हुबा लाग ज्यावै...
तो
एकर महाराणा प्रताप की जीवनी पढ़ लीज्यो।

म आ कोनि केउ, इन पढ़ बा स्यु थांकी समस्या कम हु ज्याई, लेकिन अति पक्की ह थांको नजरियों बदल ज्याई।
थाने आ लाग सी क यार दुनिया म ओर भी कई हा झका आपण स्यु ज्यादा कष्ट देख र गया ह।
ओर 
इस्या हालात म क्यु कर र गया ह झका म आपा क्यु करबा की सोच कोनि सका। 

आपण साथ दिक्कत आ ह- थोड़ी सी परेशानी आई और भगवान न दोष देबो शुरू, आपणी परेशानी और तकलीफ की बजह आपा दूसरा न माना। आपण साथ क्यु बुरो हुवे जद आपा न लागे भगवन आपण साथ ही इस्यो क्यु करे, आपा तो कोई को बुरो करयो ही कोनि। अपनी मेन  कमजोरी ह आपा हार जल्दी मान लेवा।

लेकिन

प्रताप ई मामला म, अपने आप म सँघर्ष ओर सफलता की जीवंत कहानी ह। सोच र देखो झका को जन्म राजमहल म हुय्यो  ओर झको पूरा राजसी वैभव को हकदार हो, बिको बचपन जंगल म भील ओर आदिवासी के बीच म बितयो।
प्रताप के जन्म स्यु पेलि ही बिका दुश्मन जन्मगा। ई न पैदा हुता ही मार बाळा पैदा हुग्या।

थोड़ो बड़ो हुय्यो र मा बाप को देहांत हुग्यो। म केउ कदम कदम पर भगवान मुश्किल खड़ी करबा म कमी कोनि राखी । नियम स्यु राजा बनबा को हकदार प्रताप ही  ह्यो, पण नही। 
नियति न ओर ही क्यु मंजूर ह्यो, खुद का सागे भाई ही झका का दुश्मन हो बिंकी हालत थे सोच सको।
प्रताप कदम कदम पर आप का हक के लिये लड़ाई करि, षंघर्ष करयो  ओर राजा बन्यो।

थोड़ा दिन शांति स्यु निकल्या, पच्छ फेर बो तुर्क को मुत अकबर पीछे पडग्गयो, क तो अधनता स्वीकार करो या युद्ध करो। लेकिन  गुलामी तो खून म ही कोनि, किया करले।

परिणाम स्वरूप युद्ध ही हुय्यो, हल्दीघाटी म वर्ल्ड फेमस युद्ध हुय्यो। कठे 20 हजार सनिक ओर कठे 80 हजार।
लेकिन 
षंघर्ष करयो, घुटना कोनि टेकया परेशानी के आगे।
हल्दीघाटी म चाहे महराणा की हार हुगी हुली, लेकिन जीत अकबर की भी कोनि हुई, बिने भी बिंकी नानी ओर दादी याद आएगी।

हल्दीघाटी बाद म,
महाराणा की जिंदगी  बदल गई,   षंघर्ष को नयो दौर शुर हुय्यो। आदमी जद खुद  पर आवे तो सहन कर लेवे लेकिन जद बी की औलाद पर आवे तो सहन बहुत दोरो हुए । लेकिन प्रताप ई दुख न भी हँसतो हँसतो सहन करगो। प्रताप की औलाद,  झकी महला की हकदार ही।खा णा म झका 56 भोग खाता, नोकर चाकर आगे पीछे रहता, बे आज डूंगरा म रेव। घास की रोटया खावे। दर दर की टोकरा खावे।
लेकिन  प्रताप ई दुख में भी सहन करयो लेकिन संघर्ष को गेलो को नहीं छोड़ो ,हिम्मत कोनी हारी। 
लास्ट तक संघर्ष करयो ओर आपको मेवाड़ वापस लियो। मरयो जद कोई को गुलाम कोनि ह्यो, जिंदगी आपकी शर्त पर जी, कोई और कि गुलामी कोनि करि।
ख्याल तक कोनि आयो कदे, के अकबर न खुद को बादशाह घोषित करदे।

आपन साथ काइ  दिक्कत ह, थोड़ी सी तकलीफ आव और आपा गेलो  ही बदल देवा।
 दो बार पटवारी की एग्जाम दे दी फेल होगा अगली बार पटवारी को फार्म कोनि भरा, राजस्थान पुलिस को भरस्या।
फिर दो बार  राजस्थान पुलिस को भी भर दियो नंबर कोनि आया तो सोच लेवा की आपने किस्मत में ही नौकरी कोनी अपनों को प्राइवेट नौकरी करस्या।

"आपणी परेशानी आ ही ह क आपा परेशानी स्यु परेशान हु ज्यावा।"

महाराणा की जीवनी अपने आप म बहोत प्रेरणादाई ह, कोई भी कुछ भी कर सके।

आपा न दूसरा का सुख आपण स्यु ज्यादा दिखे ओर दूसरा के परेशानी आपण स्यु कम दिखे।

तो
आगे जद कदे भी कोई दीक़त आव या हिम्मत हार ज्यावो तो मेर केबा स्यु,  मन स्यु महाराणा की जीवनी पढ़ लीज्यो।
नयो जोश और हिम्मत आ ज्यासी,, म तो खुद प्रेक्टिकल बात बता रह्यो हु जद मेर जिस्यो झका न कि कोनि आव, बो नोकरी लाग सके तो थे तो बहोत कुछ कर सको।
बस ए छोटी मोटी असफलता स्यु घबराया मत करो, नोकरी तो थाकि बी दिन ही लाग गी झक दिन थे मन स्यु लाग बा कि सोच ली...


गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

भारत रौ संविधान- प्राकथन (प्रस्तावना)


 आपां भारत रा लोग सगळे  भारत नै एक प्रभुसत्ता रै जेङौ ,समाजवाद रौ अनुयायी,पंथ निरपेख,लोगतनतरातम गण राज बणावण सारू ,अर इणरा सगळा नागरिकां नै सामाजिक,आरथिक, राजनैतिग न्याव,विचार ,बौलण, विशवास, धरम अर उपासणा री सुतंत्रता, पैठ, ऐंन अवछर री समानता हासळ करण सारू अर इण सगळा मांय मिनख़ री मरजादा न देस रौ ऐकौ  अर अखंडपणौ पकायात करण वाळो भाइपौ बढाण वास्ते गाढै प''ण रै सागै आपणी इण संविधान मंडळी मांय आज ताऱीख़ 26 नवंबर 1949 ई. (मिति माघ महीने री च्यानण पख री सातम संमत् २००६ वि.)
नै इण सूं ,इण संविधान नै अंगेजां ,माना अर आतमारपित करां 
जै हिन्द 

सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

जचे ही कोनी...

बाणियो 'व्यापार' बिना,
दुल्हन 'सिणगार' बिना,
बीन्द  'बारात'  बिना,
चौमासो 'बरसात' बिना.....जचे ही कोनी।

बाग 'माळी' बिना,
जीमणो 'थाळी' बिना,
कविता 'छंद' बिना,
पुष्प 'सुगन्ध' बिना.....जचे ही कोनी।

मन्दिर 'शंख' बिना,
मोरियो 'पंख' बिना,
घोड़ो 'चाल' बिना,
गीत 'सुर-ताल' बिना.....जचे ही कोनी।

मर्द 'मूँछ' बिना,
डांगरो 'पूँछ' बिना,
ब्राह्मण 'चोटी' बिना,
पहलवान 'लंगोटी' बिना.....जचे ही कोनी।

रोटी 'भूख' बिना,
खेजड़ी 'रुँख' बिना,
चक्कु 'धार' बिना,
पापड़ 'खार' बिना.....जचे ही कोनी।

घर 'लुगाई' बिना,
सावण 'पुरवाई' बिना,
हिण्डो 'बाग' बिना,
शिवजी 'नाग' बिना.....जचे ही कोनी।

कूवो 'पाणी' बिना,
तेली 'घाणी' बिना,
नारी 'लाज' बिना,
संगीत 'साज' बिना.....जचे ही कोनी।

इत्र 'महक' बिना,
पंछी 'चहक' बिना,
मिनख 'परिवार' बिना,
टाबर 'संस्कार' बिना.....जचे ही कोनी।

बुधवार, 3 अगस्त 2016

रूडा़ राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे।

शीश बोरलो नासा मे नथड़ी सौगड़ सोनो सेर कठे ,
कठे पौमचो मरवण को बोहतर कळिया को घेर कठे,!
कठे पदमणी पूंगळ की ढोलो जैसलमैर कठै,
कठे चून्दड़ी जयपुर की साफौ सांगानेर कठे !
गिणता गिणता रेखा घिसगी पीव मिलन की रीस कठे,
ओठिड़ा सू ठगियौड़़ी बी पणिहारी की टीस कठे!
विरहण रातों तारा गिणती सावण आवण कौल कठे,
सपने में भी साजन दीसे सास बहू का बोल कठे!
छैल भवंरजी ढौला मारू कुरजा़ मूमल गीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे!!

हरी चून्दड़ी तारा जड़िया मरूधर धर की छटा कठे,
धौरा धरती रूप सौवणौ काळी कळायण घटा कठे!
राखी पुनम रैशम धागे भाई बहन को हेत कठे,
मौठ बाज़रा सू लदीयौड़ा आसौजा का खैत कठे!
आधी रात तक होती हथाई माघ पौष का शीत कठे,
सुख दःख में सब साथ रेवता बा मिनखा की प्रीत कठे!
जन्मया पैला होती सगाई बा वचना की परतीत कठे,
गाँव गौरवे गाया बैठी दूध दही नौनीत कठे!
दादा को करजौ पोतों झैले बा मिनखा की नीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे!!

जाज़म बैठ्या मूँछ मरौड़े अमला की मनवार कठे,
दोगज ने जो फिरतो रैतों भूखों गाजणहार कठे!
काळ पड़ीया कौठार खौलता दानी साहूकार कठे,
सड़का ऊपर लाडू गुड़ता गैण्डा की बै हुणकार कठे!
पतिया सागे सुरग जावती बै सतवन्ती नार कठे,
लखी बणजारो टांडौ ढाळै बाळद को वैपार कठे!
धरा धरम पर आँच आवता मर मिटनै की हौड़ कठे,
फैरा सू अधबिच में उठियौं बो पाबू राठौड़ कठे!
गळियौं में गिरधर ने गावैं बी मीरा का गीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे!!

बितौड़ा वैभव याद दिलवै रणथम्बौर चितौड़ जठे,
राणा कुमभा को विजय स्तम्भ बलि राणा को मौड़ जठे!
हल्दिघाटी में घूमर घालै चैतक चढ्यों राण जठे,
छत्र छँवर छन्गीर झपटियौ बौ झालौ मकवाण कठे!
राणी पदमणी के सागै ही कर सौलह सिणगार जठे,
सजधज सतीया सुरग जावती मन्त्रा मरण त्यौहार कठे!
जयमल पता गौरा बादल रैखड़का की तान कठे,
बिन माथा धड़ लड़ता रैती बा रजपूती शान कठे!
तैज केसरिया पिया कसमा साका सुरगा प्रीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे!!

निरमौही चित्तौड़ बतावै तीनों सागा साज कठे,
बौहतर बन्द किवाँड़ बतावै ढाई साका आज कठे!
चित्तौड़ दुर्ग को पेलौ पैहरी रावत बागौ बता कठे,
राजकँवर को बानौ पैरया पन्नाधाय को गीगो कठे!
बरछी भाला ढाल कटारी तोप तमाशा छैल कठे,
ऊंटा लै गढ़ में बड़ता चण्डा शक्ता का खैल कठे!
जैता गौपा सुजा चूण्डा चन्द्रसेन सा वीर कठे,
हड़बू पाबू रामदेव सा कळजुग में बै पीर कठे!
कठे गयौ बौ दुरगौ बाबौ श्याम धरम सू प्रीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे!

हाथी को माथौं छाती झाले बै शक्तावत आज कठे,
दौ दौ मौतों मरबा वाळौ बल्लू चम्पावत आज कठे!
खिलजी ने सबक सिखावण वाळौ सोनगिरौं विरमदैव कठे,
हाथी का झटका करवा वाळौ कल्लो राई मलौत कठे!
अमर कठे हमीर कठे पृथ्वीराज चौहान कठे,
समदर खाण्डौ धोवण वाळौ बौ मर्दानौं मान कठे!
मौड़ बन्धियोड़ौ सुरजन जुन्झै जग जुन्झण जुन्झार कठे,
ऊदिया राणा सू हौड़ करणियौ बौ टौडर दातार कठे!
जयपुर शहर बसावण वाळा जयसिंह जी सी रणनीत कठे,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे !!
रूडा़ राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठे।

मंगलवार, 2 अगस्त 2016

गहणा गांठा गजब रा 

गहणां गांठा गजब रा  जीवां  बड़ो जतन्न
मिनखां सूं मोळा घणा मिनकी माथै मन्न

मरतो भूखो मानखो औदर मिले न अन्न
दुनियादारी दोगली मिनकी माथै मन्न

पुरसारथ रे पांण तो दोरो ढकणो तन्न
अनीति आमद करै जद मिनकी माथै मन्न

मिनकी मुख फेरे नहीं कितरा करो कळाप
अे सी बी ने ओळबा  परो मिटावो पाप

मिनखां से मिनकां बड़ा  भला सराया भाग
जुर जुर जीवै जूण ने  करमां बोले काग

मिनकी बड़ी महान .मेंबरशिप माडे थन्ने
नहीं टिकट नादान निर्दल थन्ने  जीतावस्यां ...

रतन सिंह चंपावत

शनिवार, 30 जुलाई 2016

थाकी बैठी आज डोकरी।


थाकी बैठी आज डोकरी।
राखी घर री लाज डोकरी।।
वडकां बांधी,भुजबल पोखी।
काण कायदै पाज डोकरी।।
कदै नवेली दुलहण आंगण।
होती ही सिरताज डोकरी।।
कदै रूप भंमराता भंमरा।
पिव रो होती नाज डोकरी।।
सावण सुरंगी तीज लागती
भादरवै री गाज डोकरी।।
खाणो,पीणो,गाणो, रंजण।
इकडंकियो घर राज डोकरी।।
राजा राणी कितरी काणी।
हरजस वाणी साज डोकरी।।
साजै- मांदै आंणै- टांणै।
सबरै हाजर भाज डोकरी।।
समै देख फसवाड़ो फोर्यो।
खुद घर झेलै दाझ डोकरी।।
खुन पसीनो पायर पोस्या।
वां कीनी बेताज डोकरी।।
बहुवां देख सिकोतर आई।
बेटा बणिया बाज डोकरी।।
हाथ माथै नैं दे पिसतावै।
कर अपणो अक्काज डोकरी।।
सब रा ओगण देख विसारै।
क्षमा भर्योड़ी जाझ डोकरी।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

घंटा

एक बार एक जाट ताऊ प्लेन से
लन्दन जा रहा था,
बगल में एक अंग्रेज बैठा हुआ था !
--
जाट ने अंग्रेज से पूछा - "आप क्या करते हो ?
अंग्रेज - मैं एक साईंटिस्ट हूँ... और आप ?
जाट - मैं मास्टर हूँ !
--
अंग्रेज - "WoW teacher क्या हम किसी टॉपिक पर बात कर सकते हैं ?"
जाट - "बिलकुल ,
--
अंग्रेज - "अच्छा, तुम मुझे न्यूक्लियर पावर के बारे में कुछ बताओ ?
--
जाट ये सुनकर चुप रह गया !
--
अंग्रेज - (व्यंग से) "ओह ~ तो तुम नहीं जानते ?"
जाट - "जानता तो हूँ लेकिन तु पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो"
अंग्रेज - "hmmm~ पूछो .?
--
जाट - "मंदिर में भी घंटा होता है और चर्च में भी घंटा होता है, तो फिर
चर्च का घंटा मंदिर के घंटे से बड़ा क्यों होता है ?
अंग्रेज कुछ देर सोचता
रहा फिर बोला - "मैं नहीं जानता"
जाट ने एक दिया खीच के कान के निचे और बोला "अबे साले .. पता तनै घंटे का भी ना है और
बात न्यूक्लियर पावर की करै है !!