गुरुवार, 27 मई 2021

बाहर का डाक्टर

कोई भी बाहर का डाक्टर राजस्थान में आकर अस्पताल  नहीं खोल सकता 

क्यों? 

क्योंकि राजस्थान के मरीज की बिमारी राजस्थान के डाक्टर के अलावा कोई समझ ही नहीं सकता 

कुछ राजस्थानी बीमारियां :-

"पिंडी फ़ाटै है"



"कालजे मे धुओं उठै है

"जी दुःख पाव है"

"सार दिन माथौ भन भन करै है"



"पेट म कुलल कुलल होव है"

"कालजे म कुलमुलाट सी होव है"

"दांत कुलै है"

"जी सो उठ है"

"दो जना बोलेडा भी कोई न सुहाव है"

"गोडा चु चु करें  है"

"कान में सईं सईं होरी है "

"कालजे में धकल बकल लाग री है"

"जी राजी कोनी"



ऐसी ऐसी बीमारी सुनकर अच्छे अच्छे MBBS को अपनी डिग्री पर शक हो जाता है कि साला कहीं ये Chapter छूट तो नहीं गया था।।।

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

चारण काव्य

चारण भक्त कवियों रै चरणां में.....

चारणों में काव्य सृजनकर्ताओं की एक लंबी श्रृंखला रही है।
जिन्होंने निसंदेह राजस्थानी साहित्य को विविध आयामी बनाकर ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उन सभी सत्पुरुषों को सादर प्रणाम।*
मेरी हार्दिक इच्छा है कि उन चारण मनीषियों पर एक पुस्तक का प्रणयन किया जाए जिन्होंने ग्रहस्थ अथवा संन्यास जीवन में रहकर हरिभजन पर जोर रखा ।उनकी उस साधना को लोकमान्यता मिली ।
ऐसी कुछ हुतात्माओं के श्रीचरणों में एक काव्यांजलि प्रस्तुत कर रहा हूं।*
मेरा यह कतई दावा नहीं है कि चारणों में इतने ही भक्त हुए।इनसे कहीं ज्यादा हुए लेकिन मुझे इतने ही नाम ज्ञात थे।
अतः आप सभी विद्वानों से अपेक्षा रखता हूं कि मैं जिन महात्माओं के नाम भूल गया हूं अथवा कुछ जानकारियां गलत लिख चूका हूं तो मार्गदर्शन कर कृतार्थ करेंगे ताकि पुस्तक सही रूप में आ सके।
चारण भगत कवियां रै चरणां में सादर-
        दूहा
चारण वरण चकार में,
कवि सको इकबीस।
महियल़ सिरहर ऊ मनूं,
ज्यां जपियो जगदीश।। 1

रातदिवस ज्यां रेरियो,
नांम नरायण नेक।
तरिया खुद कुल़ तारियो।
इणमें मीन न मेख।।2

तांमझांम सह त्यागिया,
इल़ कज किया अमांम।
भोम सिरोमण वरण भल,
निरणो ई वां नांम।।3

जप मुख ज्यां जगदीश नै,
किया सकल़ सिघ कांम।
गुणी करै उठ गीधियो,
परभातै परणांम।।4

भगत सिरोमण भोम इण,
तजिया जाल़ तमांम।।
गुणी मनै सच गीधिया,
रीझवियो श्रीरांम।।5
        छप्पय
आसै बारठ एक
अवन पथ पाल्यो आदू।
दीतावत दुनियांण,
गोमँद नै गायो गादू।
गुण निरंजण परांण,
अलख री कथा उकेरी।
लक्ष्मणायण भल लिख,
भोम ली क्रीत भलेरी।
हद भजन हरफ लिखिया हरख,
अख गल्ला अवधेस री।
पावनं दिशा पिछमांण पुणां,
भोम भली भादरेस री।।6

 ईसर हर हर उचर,
रांम अठजांम रिझायो,
सूरावत बल़ सांम,
नांम निकलंक कमायो।
अरस-परस प्रभु आप,
दरस रोहड़ नै दीधा,
पात जिकण रै पांण,
काज सुखियारथ कीधा।
भव तणा फंद जिण भांजिया,
गोमँद निसदिन गावियो।
भांणवां छात बल़ भजन रै,
पद परमेसर पावियो।।7

हुवो कवि घर हेम,
अखां इम कवियो अलू।
 जसरांणै की जोर,
भांत बोह गल्ला भलू।
छट्टा छप्पय छंद,
विमल़ कथ भजन बिखेरी।
सगुण निगुण इक सार,
हिये मँड मूरत हेरी।
दिल दांम कांम तजिया दुरस,
रांम नांम नित रेरियो।
इल़ बीच अलू हुइयो अमर,
टीकम नै जिण टेरियो।।8

सकव बडो सदमाल,
छींडिये गाडण छोगो।
दाखां केसोदास,
जिकण घर कवियण जोगो।
सबदां अरथ सतोल,
विमल़ कव कायब वाणी,
वरदायक वेदांत,
निमल़ जिण कथी निसाणी।
आखरां पांण अवनी अमर,
बदनन चिंता वेश री।
ग्यान नै ग्रहण गाडण रटी,
महिमा सदा महेस री।।9

 मांडण भो मतिमान,
बडो गाडण गुणधारी।
सधर सदा सुभियांण,
मुणी जिण कथा मुरारी।
रिदै राख रच रांम,
जगत रा तजिया जाल़ा।
मोह माया मद दूर,
मुकँद री फेरी माल़ा।
पाप रा फंद तोड़्या प्रगट,
धुर उर वीठल़ धारियो।
गीधिया साच सुणजै गुणी,
सत बल़ जनम सुधारियो।।10

कवियण करमाणद,
जात मीसण जग जांणै।
सांमल़ियो नित सुमर,
अंजस अँतस में आंणै।
परहित कारण पेख,
दुरस जिण दाख्या दूहा।
जिकै गया जग जीत,
वाट जो कहियै बूहा।
प्रभु नांम तणो परताप ओ,
अखी नांम धर पर अजै।
गुण जांण असर कवी गीधिया,
भगवत नै क्यूं नीं भजै।।11

मेहडू महियल़ मोट
गोदड़ हुवो गुणगांमी।
अहरनिसा उर आप,
नांम रटियो घणनांमी।
द्वेष राग सूं दूर,
धेख नको मन धारी।
जांणी चारण जिकै,
भजन री ताकत भारी।
अवचल सुजाव अविचल़ सदा,
रटियो नितप्रत रांम नै।
इहलोक अनै परलोक उण,
कियो अमर जिण कांम नै।।12

हुवो भल़ै हरदास,
जीभ जपण जगजांमी।
बोगनियाई वास,
विदग वडो वरियांमी।
आखर कवि अमाम,
जिकै मुख साकर जोड़ै।
पढ़ै ऊठ परभात,
तिकां तन पातक तोड़ै।
सिरै भगत कवियण पण सिरै,
जग जाहर  बातां जको।
सत गीध बात मनजै सही,
नांम समोवड़ है नको।।13

जैतै रै घर जोय,
देख दूथी दधवाड़ै।
मांडण भगत मुरार,
गढव वडो गढवाड़ै।
मांडण रै घर मांय,
चवां कवि मोटम चूंडो।
निमँधाबँध जिण नांम,
आखियो ग्रंथस ऊंडो।
छँद भाव छटा छौल़ां लहै,
माठा करमज मेटणा।
शुद्ध रिदै चाव सँभलै सही,
भगवत रो मग भेटणा।।14

चावो चरपटनाथ,
जोग जिण जबर कमायो।
मोह मछर तज मुदै,
महि महादेव मनायो।
नवनाथां में नांम,
सकल़ में आज सुणीजै।
जग गोरख रै जोड़,
गुमर रै साथ गिणीजै।
ग्यांन रै पांण अघ  गंजिया,
ध्यांन रिदै हर धारियो।
चेलकां तार चित ऊजल़ै,
तिण   निज कुल़ नै तारियो।।15

महियल़ माधोदास,
चूंड तनय  बसू चावो।
देवगुणां दुनियांण,
ठीक महाभट्ट ठावो।
असमर एकै आच
कलम दूजै पण कहिये।
परहित मोटै पात,
वीरगत समहर वरिये ।
रामरासो रच रातदिवस,
रटियो जस रस रांम रो।
गीधिया साच मनजै गुणी,
नित बल़ राख्यो नांम रो।।16

नरहर नांमी नांम,
मही रोहड़ मुगटामण।
अवतारां जस आख,
अवन ली कीरत अण-मण।
बहुभाषी विद्वान ,
अकल रो कहिये आगर।
भरियो जिण बहुभांत,
गुणी सागर नै गागर।
लखपत सुजाव लखमुख लियो,
भल जस भगती भाव सूं।
गीधियां मान ज्यांरो गुणी,
चवजै गुण तूं चाव सूं।।17

 कहियै सिरहर कोल्ह,
विदग बावली वासी।
चौराड़ां चहुंकूट,
सुजस लीधो सुखरासी।
दूथी जिण धर देख,
गाढ धर हरिगुण गायो।
धिनो द्वारकाधीस,
राग इक टेर रिझायो।
कांनड़ै बात करी कहूं
पात मनोरथ पूरती।
गीधिया दरस करजै गुणी,
मंदर साखी मूरती।।18

टेलै बारठ तेज,
ईहग बडो अजबांणी।
तांमझांम सह त्याग,
बोलियो इमरत वांणी।
घट में रख घनश्यांम,
अवर  सह रखिया आगा।
तिण कीनी तप तांण,
जबर आगीनै जागा।
महि बात अजै शुद्धमन मनै,
जव रो फरक न जांणजै।
सुण गल्लां इयै कवि गीधिया,
उरां भरोसो आंणजै।।19

 सांई रो सेवग्ग,
जोर सांईयो झूलो।
त्रिकम वाल़ी टेर,
भगत पल हेक न भूलो।
जिणरी काढी जोय,
चतुरभुज हाथां चांटी।
सज लायो लद सांढ,
छती जिण आसण छाटी।
नागदमण उण रचियो निमल़,
 पाठ घरोघर घण करै।
गीधिया साच मनजै गुणी,
धुर तूं चरणां चित धरै।।20

जुढिये लाल़स जोय,
परभु रो चाकर पीरो।
इणमें मीन न मेख,
हुवो जाती में हीरो।
अलख दिसा अरदास,
दास उर निर्मल़ दाखी।
धिन गुरु ईसर धार,
रुची जस राघव राखी।
थल़ धरा थंभ भगती तणो,
थिर कर रेणव थप्पियो।
जग जाल़ पीर परहर जबर,
जगदीसर नै जप्पियो।।21

 रतनू हुवो हमीर,
घरै गिरधरण घड़ोई।
गुणी धरा गुजरात,
परभु जसमाल़ पिरोई।
अमर भयो इल़ आप,
रची रचनावां रूड़ी।
लीधो जस कव लाट,
कहूं इक बात न कूड़ी।
सर्वधर्म एको सदभावना,
जिणरो कायब जोयलै।
कर पाठ गीध नितप्रत कवी,
हेतव शुद्धमन होयलै।।22

वीरभांण विखियात,
मही कव मुरधर मोटो।
तिण सह बातां त्याग,
ईस रो ग्रहियो ओटो।
मुरधरपत अभमाल,
रसा रतनू नै रीधो।
मेदपाट नै माड,
कुरब महपतियां कीधो।
हरभजन कियो जिण हर समै,
वरी अमरता बेखलो।
घट्ट संक बिनां कहै गीधियो,
पंगी चहुंवल़ पेखलो।।23

वीठू ब्रहमादास,
पात माड़वै पोढी।
दादूपँथ री देख,
अंग जिण चादर ओढी।
भगतमाल़ जिण भाख,
मुणी भगतां री महिमा।
आखरियां अजरेल,
गाय गोमँद री गरिमा।
पिछम सूं पूर्ब इक मन पढै,
आ वाणी आनंद री।
ऊपजै गीध गुण ईश री,
छौल़ां हिरदै छंद री।।24

विदग विणलिये बास,
भई ओ रतनू भीखो।
गाया गीत गँभीर,
जगत जाहर जस जीको।
सरस पढण में सार,
सको इकसार अतोला।
जड़िया नीती नग्ग,
आखरां भाव अमोला।
जनलाभ गीध आखर जिकै,
जगदीसर रै जाप रा।
मनधार मिनख पढसी मुदै,
प्रजल़सी फंद पाप रा।।25

 देथो मथुरादास,
परम चरणां में पासो।
धरण निवासी धाट,
रच्यो कव राघव रासो।
राम कथा कह रुचिर,
जथा पण भगती जाझी।
खरी कमाई खाय,
सुरग री वाटां साजी।
नरदेह करी निकलंक जिण,
नहीं कियो कज नांनियो।
गीधिया साच सुणजै गुणी,
मही धिनोधिन मांनियो।।26

 नांमी ब्रहमानंद,
भजन कीधो बडभागी।
स्वामी री ले शरण,
अपड़ चरणां अनुरागी।
गुरु सूं पायो ग्यांन,
सधर कीधी सतसंगत।
डींगल़ पींगल़ दुरस,
पात विद्या पारंगत।
शंभु रै सदन सुत आसियो,
खरो रतन नर खांण रो।
चतरपांण गीध शरणो चहै,
बरणै कवत  बखांण रो।।27

 चव कवियो चिमनेस,
वाह वाणी वरदायक।
नेस बिराई निपट
 हुवो लुदरावत लायक।
हरि सूं करनै हेत,
गड़ै तपियो गुणधारी।
किरता री रच कथा,
सही नरदेह सुधारी।
सिद्ध पुरस मनै थल़ सांपरत,
भला दरस कर भाव सूं।
कर जीभ पवित गिरधर सकव,
चरित बांचजै चाव सूं।।28

 बारठ कान्हो वल़ै,
 टेर हर काया तपतो।
लागी इक ही लगन,
 जदै मुख राघव जपतो।
कथिया गीत कवत्त,
इष्ट आधार अराधै।
गूंथ्यो ग्यांन गहीर,
सुपथ भगती रो साधै।
मोह नै मेट माया तजी,
मद नै रद कर मारियो।
रांम रो नांम गिरधर रसा, 
ईहग इयै उचारियो।।29

नितां नम्यो नारांण,
 पात सदा हरी पायक।
जांण जीवाणँद जेम,
 गुणां गोमँद रो गायक।
दूदो फेरूं देख,
 सदा हरभजन सुणाया।
सकवी सिवो सुफेर, 
करी निरमल़ इम काया।
चौमुख अनै चोल़ो चवां, 
रांम नांम नित रेरियो।
मानजै गीध पाछो मुरड़, 
घोटो जम रो घेरियो।।30

उतन बल़ूंदै एक,
ईहग दधवाड़्यो ईसर।
जोड़ी जिण कव जोर,
प्रीत री डोर प्रमेसर।
राखी आदू रीत,
गढव बड आप घरांणै।
सुज माल़ा में सार,
मांन धिन मसती मांणै।
निसदिवस नांम सूं नेहधर,
पात मनोरथ पूरिया।
गीधिया बात आंरी ग्रहण,
कारज तजदे कूड़िया।।31

संतदास सिरमोड़,
पंथ गूदड़ियां पेखो।
आढो ओपो अवर, 
लियो रघु-नाम सुलेखो।
रतनू परसारांम, 
मुणी जिण भगतां- माल़ा।
कटिया माठा करम,
अगै दिन हुवा उजाल़ा।
जसकरण नाम हर हर जप्यो, 
मही रतनू धिन माढ रै।
गीधिया वरण अंजस गहर, 
चाव भाव चित चाढ रै।।32

अरबद री इल़ एक,
 सांवल़ आसो सुणीजै।
नेस फैदांणी नांम,
कवी जो भगत कहीजै।
सांदू रायांसिंघ, 
मही हुइयो मिरगेसर।
पढ माल़ा परताप,
ऐह राजी अवधेसर।
नीत तणा नग जगमग जड़्या,
साख सोरठा है सही।
कवि गीध इणां नितप्रत कह्यो,
नांम समोवड़ को नहीं।।33

चावो चुत्तरदास,
बास तपियो बूटाटी।
जिकै तपोबल़ जोर,
केतलां विपत्ति काटी।
सांगड़िये सदुराम, 
कठण तप जोग कमायो।
कह गाडण कलियांण, 
सरस मन नाथ सरायो।
सांम रा दास मांनै सकल़, 
साखा जग भरवै सही।
सुभियांण गीध सरणो सदा, 
कव ज्यांरो उत्तम कही।।34

वड देथां रै वंश, 
सिम्मर  सरूपो सांमी।
लिवना में हुय लीन,
नितां जपियो घणनांमी।
चावो चारणवास,
   क्रीत पदमावत पांमी।
गुणियण नाम गुणेश, 
वाह बारठ वरियांमी।
सत्त री परख कीधी सही, 
मन तन सांसो मेटियो।
गीधिया बात साची गिणै, 
भगवत आंनै भेटियो।।35

सकव बडो सिवदान, 
भू तपियो भादरेसो।
बायां ठांभी व्योम, 
अवन कियो तप ऐसो।
सकव सरवड़ी साच, 
बोगसो ईसर बेखो।
रटियो मुख दिन-रात, 
पात परमेसर पेखो।
गीधिया साच गिणजै गुणी, 
भगत वडा भू ऊपरै।
जाप रै पांण इण जगत में, 
तारै पापी खुद तरै।।36

भाषा भारथ भाल़, 
कविवर भारथ कीधी।
ईंटदडै अखियात, 
लाट जग कीरत लीधी।
बुधसिंह वरियांम, 
विदग मोगड़ै वाल़ो।
देवी रो जस देख, 
उरां मंझ कियो उजाल़ो।
काग रै नाम कंठ कोकला, 
देख भगत धिन दूलियो।
गीधिया जिको निज री गिरा, 
भगवत नै नीं भूलियो।।37

जोगो लाल़स जोर
जको जुढिये धर जाणो।
निकलंक नाथूरांम,
बात दिल खोल बखाणो।
कूड़ तणी जड़ काट,
साच जिण रिदै समाई।
महियल़ उणरी मदत,
सदा रहियो धिन सांई।
गीधिया साच मनजै गुणी,
इयै नरां धिन आपजै।
कीरती जेम किरतार री ,
ज्यूं आंरी मुख जापजै।।38

जगै लीनी हद जोय, 
खूब खिड़िये जग ख्याती।
रख हिरदै नित रांम, 
जिकै की ऊजल़ जाती।
मंगल़रांम महि माथ, 
पंथ दादू अपणायो।
पुनी श्रद्धा रै पांण,
 राग कर नाथ रिझायो।
रांम री धीव सम्मान रँग, 
कवियांणी नांमो कियो।
गीधिया टेर गोविंद गुण, 
लाट धरा जस युं लियो।।39

मोह द्रोह तज मछर, 
तिकां ममता जग त्यागी।
रांम नांम मुख रेर, 
जिकां लिवना हिक जागी।
ऐस भोग आरांम,
 गहर ज्यां पातक गिणिया।
सांम तणी ले शरण, 
माल़ गिड़काया मिणिया।
ऊजल़ो वंश कीधो अवन, 
काया ज्यां निकलँक करी।
गीधिया साच मांनै गुणी, 
हेले हाजर हो हरी।।40

कियो न कदै अकांम,
हांम पूर्ण प्रभु हेर्यो।
जिकां जाप अठजांम,
रांम नांम मुख रेर्यो।
करी न बातां कूड़,
रंच उर घात न राखी।
ज्यांरी अजतक जोय,
सुजस धजा जग साखी।
ऐहड़ा रतन हुइया अगै,
ईहग वरण उजाल़वा।
एक ई काज कीधो अटल़,
पह पथ भगती पाल़वा।।41
गिरधरदान रतनू दासोड़ी