मंगलवार, 19 मई 2020

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

- किण सूं भी सीधे मूंडै बात नही करणी।
- भूसाघड़ जी नै भी मूंडै नही लगावणो।
- असींदो मिनख देखतां ई मूंडो फेर लेवणो।
- नरम हुवण री जरूरत कोणी, अकड़ियोडो छोडो व्हे ज्यूं रेवणो।
- किणनै ई नैड़ो नी फटकण देवणो।
- बिना मूमती बांधियाँ कोई दीसे तौ दो ठोला धरणा।
- जै कोई छींकण नै मूंडो ऊंचो करे फट आगौ हू जावणो।
- फूट लै, आगो बळ सबदां रौ जादा सूं जादा प्रयोग करणो।
- दीनुगै चरचरे पाणी रा कम सूं कम दो गिलास अरोगणा।
- तुलछी, अदरक, लूंग, पोदीणौ  चेपण माथै जोर राखणो।

इत्ती हावचेती राख ली तौ कोरोणा रा दा'जी भी थारों कीं नी बिगाड़ सकै। बाकी थांरली मरजी। थै जाणो नै थारां काम।

सोमवार, 18 मई 2020

संत पीपा

संत पीपा जी का जन्म 1426 ईसवी में राजस्थान में कोटा से 45 मील पूर्व दिशा में गगनौरगढ़ रियासत में हुआ था।
इनके बचपन का नाम राजकुमार प्रतापसिंह था और लक्ष्मीवती इनकी माता थीं।
पीपा जी ने रामानंद से दीक्षा लेकर राजस्थान में निर्गुण भक्ति परम्परा का सूत्रपात किया था।
दर्जी समुदाय के लोग संत पीपा जी को आपना आराध्य देव मानते हैं।
बाड़मेर ज़िले के समदड़ी कस्बे में संत पीपा का एक विशाल मंदिर बना हुआ है, जहाँ हर वर्ष विशाल मेला लगत है। इसके अतिरिक्त गागरोन (झालावाड़) एवं मसुरिया (जोधपुर) में भी इनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है।
संत पीपाजी ने "चिंतावानी जोग" नामक गुटका की रचना की थी, जिसका लिपि काल संवत 1868 दिया गया है।
पीपा जी ने अपना अंतिम समय टोंक के टोडा गाँव में बिताया था और वहीं पर चैत्र माह की कृष्ण पक्ष नवमी को इनका निधन हुआ, जो आज भी 'पीपाजी की गुफ़ा' के नाम से प्रसिद्ध है।
गुरु नानक देव ने इनकी रचना इनके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की थी। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव ने 'गुरु ग्रंथ साहिब' में जगह दी थी।