पीथल और पाथल
कन्हैयालाल
सेठिया
अरे घास री रोटी ही, जद बन
बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो,
राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाडी
मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो
खून बहावण नै ||
जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणा में रगत
उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकडो, सूती सी
हूक जगा जावै ||
पण आज बिलखतो देखूं हूं, जद राजकंवर
नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं
हिन्वाणी चोटौ नै ||
आ सोच हुई दो टूक तडक, राणा री
भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिख्स्यूं
अकबर नै पाती ||
राणा रो कागद बांच हुयो, अकबर
रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच
बांच नै फिर बांच्यो ||
बस दूत इसारो पा भाज्यो, पीथल ने
तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर
रो भरम मिटावण नै ||
म्हे बांध लिये है पीथल ! सुण पिजंरा में
जंगली सेर पकड |
यो देख हाथ रो कागद है, तू देका
फिरसी कियां अकड ||
हूं आज पातस्या धरती रो, मेवाडी
पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै, रजुॡती खूण
रगां में है ||
जद पीथल कागद ले देखी, राणा री
सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में
भर आयो पाणी ||
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात
सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची, राणा री
आन अटूटी है ||
ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं, राणा नै
कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही
बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है नाहरियो, स्याला रै
सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजडो, बादल री
आंटा खोवैलो ||
पीथल रा आखर पढ़ता ही, राणा री
आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक
दकाल हुई ||
हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं, मेवाड धरा
आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां
री याद रह्वै ||
पीथल के खिमता बादल री, जो रोकै
सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख
मिली कद स्याली नै ||
जद राणा रो संदेस गयो, पीथल री
छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री
दुनिया सुनी ही ||