थाकी बैठी आज डोकरी।
राखी घर री लाज डोकरी।।
वडकां बांधी,भुजबल पोखी।
काण कायदै पाज डोकरी।।
कदै नवेली दुलहण आंगण।
होती ही सिरताज डोकरी।।
कदै रूप भंमराता भंमरा।
पिव रो होती नाज डोकरी।।
सावण सुरंगी तीज लागती
भादरवै री गाज डोकरी।।
खाणो,पीणो,गाणो, रंजण।
इकडंकियो घर राज डोकरी।।
राजा राणी कितरी काणी।
हरजस वाणी साज डोकरी।।
साजै- मांदै आंणै- टांणै।
सबरै हाजर भाज डोकरी।।
समै देख फसवाड़ो फोर्यो।
खुद घर झेलै दाझ डोकरी।।
खुन पसीनो पायर पोस्या।
वां कीनी बेताज डोकरी।।
बहुवां देख सिकोतर आई।
बेटा बणिया बाज डोकरी।।
हाथ माथै नैं दे पिसतावै।
कर अपणो अक्काज डोकरी।।
सब रा ओगण देख विसारै।
क्षमा भर्योड़ी जाझ डोकरी।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
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शनिवार, 30 जुलाई 2016
थाकी बैठी आज डोकरी।
शुक्रवार, 29 जुलाई 2016
घंटा
एक बार एक जाट ताऊ प्लेन से
लन्दन जा रहा था,
बगल में एक अंग्रेज बैठा हुआ था !
--
जाट ने अंग्रेज से पूछा - "आप क्या करते हो ?
अंग्रेज - मैं एक साईंटिस्ट हूँ... और आप ?
जाट - मैं मास्टर हूँ !
--
अंग्रेज - "WoW teacher क्या हम किसी टॉपिक पर बात कर सकते हैं ?"
जाट - "बिलकुल ,
--
अंग्रेज - "अच्छा, तुम मुझे न्यूक्लियर पावर के बारे में कुछ बताओ ?
--
जाट ये सुनकर चुप रह गया !
--
अंग्रेज - (व्यंग से) "ओह ~ तो तुम नहीं जानते ?"
जाट - "जानता तो हूँ लेकिन तु पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो"
अंग्रेज - "hmmm~ पूछो .?
--
जाट - "मंदिर में भी घंटा होता है और चर्च में भी घंटा होता है, तो फिर
चर्च का घंटा मंदिर के घंटे से बड़ा क्यों होता है ?
अंग्रेज कुछ देर सोचता
रहा फिर बोला - "मैं नहीं जानता"
जाट ने एक दिया खीच के कान के निचे और बोला "अबे साले .. पता तनै घंटे का भी ना है और
बात न्यूक्लियर पावर की करै है !!
सोमवार, 4 जुलाई 2016
घंटा
एक बार एक जाट ताऊ प्लेन से
लन्दन जा रहा था,
बगल में एक अंग्रेज बैठा हुआ था !
--
जाट ने अंग्रेज से पूछा - "आप क्या करते हो ?
अंग्रेज - मैं एक साईंटिस्ट हूँ... और आप ?
जाट - मैं मास्टर हूँ !
--
अंग्रेज - "WoW teacher क्या हम किसी टॉपिक पर बात कर सकते हैं ?"
जाट - "बिलकुल ,
--
अंग्रेज - "अच्छा, तुम मुझे न्यूक्लियर पावर के बारे में कुछ बताओ ?
--
जाट ये सुनकर चुप रह गया !
--
अंग्रेज - (व्यंग से) "ओह ~ तो तुम नहीं जानते ?"
जाट - "जानता तो हूँ लेकिन तु पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो"
अंग्रेज - "hmmm~ पूछो .?
--
जाट - "मंदिर में भी घंटा होता है और चर्च में भी घंटा होता है, तो फिर
चर्च का घंटा मंदिर के घंटे से बड़ा क्यों होता है ?
अंग्रेज कुछ देर सोचता
रहा फिर बोला - "मैं नहीं जानता"
जाट ने एक दिया खीच के कान के निचे और बोला "अबे साले .. पता तनै घंटे का भी ना है और
बात न्यूक्लियर पावर की करै है !!
गुरुवार, 30 जून 2016
होपोरे कुन आवी
एक कड़वा सच
शादी में कुवारे
और शवयात्रा में बूढ़े
लोग ज्यादा इस वजह से जाते हे की दोनों को एक बात ही सताती हे
होपे नी जाइयो तो होपोरे कुन आवी
छगनजी
मारवाड़ में आधार कार्ड बन रहे थे तो एक लुगाई से अधिकारी ने पुछा की तुमारे घरवाले का नाम क्या है ........
..
.
लुगाई बोली हमारे उनका नाम नहीं लेते...
.....
अधिकारी::::::कोई हिंट तो दो:::::::::
लुगाई (3 गंजी + 3 गंजी)
......
अधिकारी बोला क्या ....
......??
तभी बाजु में बुड्ढा बोला
...........
साब "छगनजी"
बुधवार, 15 जून 2016
धरम धरा सूं लोप हुयो,
धरम धरा सूं लोप हुयो, मिनखां रा माङा हाल हुया।
खांडा हाथां सूं खिसक गया, दारू रा प्याला माल हुया।
सिंघा री हाथल़ झेलणियां, अब श्वाना रा रखवाल़ हुया।
कहो छायण अब क्या गाऊं, रजपूत भाई कलाल़ हुया।।
बै बात सटै सिर दे देता, अै नोट सटै सिर काटै है।
धन रा लोभी मतहीणां, अब थूक थूक'नै चाटै है।
हथल़ेवो छोङ'न बी'र हुयो, बो पाबू कोल निभावण नै।
अब बता किस्यै मैं है बाकी, रजपूती बैठूं गावण नै।।
इला न देता जीव थकां, मर ज्याता मायङ मान सटै।
फिरता बन बन राम बण्या, बता बिस्या रजपूत कठै।
अब तो लाडी अर गाडी ह्वै, भोम भलां ही जाती रै।
बता मनै तूं छायण अब, आ जीभ किणां बिध गाती रै।।
गरब घणेरो जिण पर करता, बो रजपूती अभिमान गयो।
खाली डील मरोङै है, बो कुल़ रो स्वाभिमान गयो।
कुल़ जात धरम सब छोङ भया, पिच्छम रा अै दीवाणा।
अब छायण तूं ही बतल़ा, किण बिध उकलै बै गाणा।।
बा रजपूती म्याना मैं सो गी, धेन धरा रूखाल़ी ही।
द्विज पद-रज री खातिर, बा रैती घणी उताल़ी ही।
अब धेन धरा तो बेच दयी, द्विज रो मान सम्मान गयो।
किण बिध गाऊं मैं रजपूती, सूनो सो हिवङो डोल रह्यो।।
बाजी कै लुल़ता पाय पकङ, दे कांधो पालकी छुङवाता।
बाजी कहदी बात नकी, पाछी कदे नीं फिरवाता।
बाजी री पहुंच रणवासां तक, महलां मांय भरोसो हो।
पिता-पुत्री ज्यां मेल़ घणां, अर रिश्तो बडो खरो सो हो।।
बो निजपण गयो, निज मेल़ नहीं, हेत खूंटग्यो हिवङां मैं।
बो साख सनातन नहीं रह्यो, अब नेह नहीं है जिवङां मैं।
तो बाजी भी पाजी बण बैठ्या, अर रजपूती मैं डोल़ नहीं।
चारण कहै साची अब छायण, इण जग मैं सांच रो मोल नहीं।।
- मनोज चारण (गाडण) "कुमार" कृत
मंगलवार, 14 जून 2016
गरविलो गढ़ जाळोर
!! गरविलो गढ़ जाळोर !!
सोराष्ट्र परदेश शिवालय सोमनाथ कहावे,
चढ़ आई मुगलीया फौज जबर जद लूट मचावे !
सोमनाथ नें लूट मुगल हद हाहाकार मचावे,
शिवलिंग नें उखाङ तुरकङा संग ले जावे !
गढ़ पूग्या जाळोर कांकङ में जद डेरा लगावे,
गुप्तचर दौङ्या आय कान्हङ ने खबर सुणावे !
कर घोर घमसाण कान्हङ शिवलिंग छुङावे,
सिंग सी करी दहाङ मुगलां नें मार भगावे !
शुभ चौघङीयो देख कान्हङदे यूं फरमावे,
"सरना" सूरां री धरा शिवलिंग थापन करवावे !
वीरमदेव सो वीर कान्हङ को पूत कहलावे,
रणखेतां रे माय मुगलां में हाहाकार मचावे !
सूरापूरा री बातां खिलजी रे जद काना जावे,
खिलजी मन खुश होय वीरम नें दिल्ली बुलावे !
कर मनमें कळाप कान्हङदे सिरदारां ने बतावे,
ले कान्हङ आशिष विरमदे दिल्ली सिदावे !
करी खातरी जोर खिलजी मनमें हरषावे,
हद हूर रो रूप फिरोजां धिवङ कहलावे !
विरमदेव रे संग निकाह उणरो करणी चावे,
विरम मन हुयो उदास मुगल सूं छळीयो जावे !
करी समझ री बात बरात लावण रो केवे,
गढ़ पूग्यो जाळोर तुरक नें तुरन्त बतावे !
हिन्दवाणी सूरां रो गरब तूं गाळ नहीं पावे,
होय हिन्दु तुरकणी परणुं कुळ चव्हाण लजावे !
दोहा:- मांमो लाजे भाटीयां,
कुळ लाजे चव्हाण,
जे हूं परणु तुरकणी,
जद पिछम उगे भाण !
ओ अपमान रो घूंट खिलजी भर नहीं पावे,
जद चढ्यो फौजा लेय जाळोर रोंदण नें आवे !
सिवाणा सिरदार सातळदेव नाम कहलावे,
कान्हङदे ले साथ मुगलां नें धूङ चटावे !
मिळ मरूधरा रा सिंग तुरकङा मार भगावे,
पांच बरस रे मांय मुगलीया मर खप जावे !
फिर फिर लावे फौज गढ़ जाळोर ढावण री चावे,
कान्हङ, सातळदेव, विरम घमसाण मचावे !
जून तेरासो दस खिलजी जद खुद चढ़ आवे,
खिलजी जबर लगावे जोर सिवाणा घेरों लगावे !
केई सालां करीयो पङाव गढ़ में घुस ना पावे,
कपटी किनो कपट पाणी ने मीदम बणावे !
किले जळ भण्डार गऊ रो रगत मिळावे,
लिनो गढ़ सिवाणों घेर बारे कोई जा नहीं पावे !
जळ में गाय रो रगत पाणी कोई कयां पिवे,
जद सांतळ करी हूंकार हाका रो एलान करावे !
जलम भौम रे काज मरण रा मंगळ गावे,
सांतळ संग राठौङ रण में रजपूती दिखावे !
मारिया मुगल अनेक आखिर रणखेत रेजावे,
गढ़ मचीयो रूदन जद जोर जौहर री चिता सजावे !
धिन धण सूरां री आज अगन में सिनान करावे,
गढ़ सिवाणो जीत खिलजी ओ एेलान करावे !
गढ़ घेरों जाळोर काफिर कोई बच नहीं पावे,
मुगल सेना मिळ जोर मारकाट हद मचावे !
गढ़ पहुंची जाळोर जैमिन्दर खण्डीत करवावे,
काना सुणीयो कान्हङ देव मुगलां रा गोडा टेकावे !
कर कपट कमालुदीन विशाळ सेना संग आवे,
गढ़ घेर लिनो जाळोर किला रे घेरों लगावे !
केई दिन किनो जोर गढ़ वो बङ नहीं पावे,
किनो घात विस्वास विको मुगलां मिळ जावे !
कान्हङ सूं वे नाराज तुरकां ने गुपत द्वार बतावे,
वीका रमणी विरांगना सहन तब कर ना पावे !
छतराणी दियो पति ने जहर हाथां विधवा बण जावे,
विक्रम संवत तेरह सौ अङसठ विरम नें राजा बणावे !
कान्हङ कियो विचार मुगलां सूं समर हो जावे,
खोल्या गढ़ किंवाङ रण में झूंझण जावे !
कान्हङ जबरो जोर मुगल मार हरषावे,
विरमदेव सो वीर मुगलां सुं लोङो लेवे !
हां छतरी वंश रा बीज सेना ने जोश बंधावे,
कर कर हिन्दू धरम ने याद वीर शमशीर चलावे !
मरणो मंगळ जाण जोधा जद जुंझार कहावे,
जुझीयां जबरा जोर अंत रणखेत रह जावे,
सनावर फिरोजां री धाय धङ सूं शीश मंगावे !
कर सुगन्धि लेप शीश नें जद दिल्ली
पहुचावे,
सजा शिश सोने रे थाळ फिरोजां पेश करावे !
कर मन ने उदास फिरोजा निरखणी चावे,
पङत फिरोजां निजर शिश पाछो फिर जावे !
कर मन में संताप फिरोजां विरम ने भतळावे,
दे दे दुहाई आज वीर ने फिरोजां यूं समझावे !
पूरब जलम री परीत सूरा विरम ने याद दिलावे,
शीश सूरा रो अटल अड़ीग पाछो फेर ना पावे !
दोहा:- तज तुरकाणी चाल,
हिन्दुआणी हुई हमे,
भो भो रा भरतार,
शीश ना धूण रे सोनीगरा !
धिन धिन धरती रा लाल विरमदेव नाम कहावे,
मरूधरा रो पूत फिरोजां दाह संस्कार करावे !
दिनो हाथां दाग फिरोजां मन दुखङो ना मावे,
विरह अगन री झाळ तुरकणी सह नहीं पावे !
क्षत्राणियां सूरा जिणीया धिन मरूधर देश कहावे !!
लेखक- कवि रावजी