शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनका परिचय

राजस्थान का एक भी जिला मुगलों के नाम पर नहीं हैं और शेष भारत में ढेरों हैं....!!

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनके नाम हैं..._
01) गंगानगर
02) बीकानेर
03) जैसलमेर
04) बाडमेर
05) जालोर
06) सिरोही
07) उदयपुर
08) डूंगरपुर
09) बांसवाड़ा
10) प्रतापगढ़
11) चित्तौड़गढ़
12) झालावाड़
13) कोटा
14) बारां
15) सवाईमाधोपुर
16) करौली
17) धौलपुर
18) भरतपुर
19) अलवर
20) जयपुर
21) सीकर
22) झुंझुनू
23) चूरु
24) भीलवाड़ा
25) हनुमानगढ़
26) नागौर
27) जोधपुर
28) पाली
29) अजमेर
30) बूंदी
31) राजसमंद
32) टोंक
33) दौसा.!!

कृपया इन नामों पर ध्यान दीजिए, नाम से ही पता चलता है कि राजपूतों ने क्या और कैसे किया.....

*अब जिलों का परिचय:-*

*अजमेर* :- अजमेर 
27 मार्च 1112 में चौहान राजपूत वंश के  तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया...!!

*बीकानेर* :- बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश
राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा.!!

*गंगानगर* :- महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा.!!

*जैसलमेर* :- जैसलमेर
महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया.!!

*उदयपुर* :- महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा..!!

*बाड़मेर* :- बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया.!!

*जालौर* :- जालौर की नींव 10वी  शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई! बाद में चौहान राठौड़, सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया..!!

*सिरोही* :- राव सोभा जी के 
पुत्र शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी 
उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी में वैशाख के दूसरे दिन द्वितिया पर सिरोही किले की नींव रखी..!!

*डूंगरपुर* :- वागड़ के राजा डूंगरसिंह ने ई.1358 में डूंगरपुर नगर की स्थापना की! बाबर के समय में उदयसिंह वागड़ का राजा था जिसने मेवाड़ के महाराणा के संग्रामसिंह के साथ मिलकर खानुआ के मैदान में बाबर का मार्ग रोका था..!!

*प्रतापगढ़* :- प्रताप सिंह महारावत ने बसाया..!!

*चित्तौड़*:- स्वाभिमान शौर्य त्याग वीरता राजपुताना की शान! 
चित्तौड़ सिसोदिया गहलोत वंश ने बहुत शासन किया ! बप्पा रावल महाराणा प्रताप सिंह जी यहाँ षासन किया..!!

*हनुमानगढ़* :- भटनेर दुर्ग 285 ईसा में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह भाटी ने बनवाया इस लिए इसे भटनेर कहाँ जाता हैं! मंगलवार को दुर्ग की स्थापना होने कारण हनुमान जी के नाम पर हनुमानगढ़ कहाँ जाता हैं..!!

*जोधपुर* :- राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. में आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की.!!

*राजसमंद* :- शहर और जिले का नाम मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में निर्मित एक कृत्रिम झील! राजसमन्द झील के नाम से लिया गया हैं..!!

*बूंदी* :- इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की
कहा जाता हैं कि बून्दा मीणा ने बूंदी की स्थापना की थी तभी से इसका नाम बूंदी हो गया..!!

*सीकर* :- सीकर जिले को वीरभान ने बसाया ओर वीरभान का बास सीकर का पुराना नाम दिया.!!

*पाली* :- महाराणा प्रताप की जन्मस्थली एवं महाराणा उदयसिंह का ससुराल हैं पाली मूलतया पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया हैं.!!

*भीलवाड़ा* :- किवदंती हैं कि इस शहर का नाम यहां की स्‍थानीय जनजाति भील के नाम पर पड़ता हैं! जिन्‍होंने 16वीं शताब्‍दी में अकबर के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की मदद की थी! तभी से इस जगह का नाम भीलवाड़ा पड़ गया..!!

*करौली* :- इसकी स्‍थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहाँ जाता हैं कि वे भगवान कृष्‍ण के वंशज थे.!!

*सवाई माधोपुर* :- राजा माधोसिंह ने ही शहर बसाया और इसका नाम सवाई माधोपुर दिया..!!

*जयपुर* :-जयपुर शहर की स्थापना सवाई जयसिंह ने 1727 में की सवाई प्रताप सिंह से लेकर सवाई मान सिंह द्वितीय तक कई राजाओं ने शहर को बसाया..!!

*नागौर* :- नागौर दुर्ग भारत के प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाये गये दुर्गों में से एक हैं! माना जाता हैं कि इस दुर्ग के मूल निर्माता नाग क्षत्रिय थे! नाग जाति महाभारत काल से भी कई हजार साल पुरानी थी! यह आर्यों की ही एक शाखा थी तथा ईक्ष्वाकु वंश से किसी समय अलग हुई..!!

*अलवर* :- कछवाहा राजपूत राजवंश द्वारा शासित एक रियासत थी। जिसकी राजधानी अलवर नगर में थी
रियासत की स्थापना 1770 में प्रभात सिंह प्रभाकर ने की थी..!!

*धौलपुर* :- मूल रूप से यह नगर ग्याहरवीं शताब्दी में राजा धोलन देव ने बसाया था! पहले इसका नाम धवलपुर था
अपभ्रंश होकर इसका नाम धौलपुर में बदल गया..!!

*झालावाड़* :- झालावाड़ गढ़ भवन का निर्माण राज्य के प्रथम नरेश महाराजराणा मदन सिंह झाला ने सन 1840 में करवाया था..!!

*दौसा* :- बड़गूजरों द्वारा करवाया गया था! बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया..!!


 🙏🙏

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ठंड पडे़ है ठाकरां...



ठंड पडे़ है ठाकरां , काठा पहनो कोट ।
दूध गटकाओ रात में,रंजर जीमो रोट॥

ठंड पडे है जोरकी,पतली लागे सौड़।
चाय पकौड़ी मूंफली, इण सर्दी रो तोड़ ॥

डांफर चाले भूंडकी ,चोवण लाग्यो नाक ।
कांमल राखां ओडके,सिगडी तापां हाथ ॥

काया धुझे ठाठरे, मुँडो छोडे भाफ ।
दिनुगे पेली चावडी, नहानो धोनो पाप ॥

गूदड़ माथे गुदड़ा , ओढंया राखो आप ।। 
ताता चेपो गुलगुला , चाय पिओ अणमाप।।। 

आप सबां ने सियाले री खम्मा घणी सा

अमर सिंह राठौड़ (नागौर के राजा)

भरे दरबार मे शाहजहाँ के साले सलावत खान ने अमर सिंह राठौड़ (नागौर राजा) को हिन्दू और काफ़िर कह कर गालियाँ बकनी शुरू की और सभी मुगल दरबारी उन गालियों को सुनकर हँस रहे थे!
अगले ही पल सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका ...!
शाहजहाँ कि सांस थम गयी। इस 'शेर' के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे. अफरा तफरी मच गयी, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे. मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे.
अमर सिंह अपने घोड़े को किले से कुदाकर घर (नागौर) लौट आये.
शारजहाँ ने हुए इस अपमान का बदला लेने हेतु अमर सिंह के विश्वासी को नागौर भेजा और सन्धि प्रस्ताव हेतु पुनः दरबार बुलाया. अमर सिंह विश्वासी की बातों में आकर दरबार चले गए.
अमर सिंह जब एक छोटे दरवाज़े से अंदर जा रहे थे तो उन्ही के विश्वासी ने पीछे से उनपर हमला करके उन्हें मार दिया ! ऐसी हिजड़ों जैसी विजय पाकर शाहजहां हर्ष से खिल उठा.
उसने अमर सिंह की लाश को एक बुर्ज पे डलवा दिया ताकि उस लाश को चील कौए खा लें.
अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के
बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से  अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !
उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया।
महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !
बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।
      बल्लूजी को अपनें मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी,दोनों हाथों से
तलवार चला रहे थे ! उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक उनके पीछे थे
जिनकी लाशें गिरती जा रही थीं और उन लाशों पर से बल्लूजी आगे बढ़ते जा रहा थे !
वह मुर्दों की छाती पर
होते बुर्ज पर चढ़ गये और अमर सिंह की लाश उठाकर अपनें कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाते हुवे घोड़े पर उनकी देह को रखकर आप भी बैठ गये और सीधे घोड़ा दौड़ाते हुवे गढ़ की बुर्ज के ऊपर चढ़ गए और घोड़े को नीचे कूदा दिया ! नीचे मुसलमानों की सेना आने से पहले बिजली की भाँति अपने घोड़े सहित वहाँ पहुँच चुके थे
जहाँ रानी चिता सजाकर तैयार थी !
अपने पति की देह पाकर वो चिता में ख़ुशी ख़ुशी बैठ गई !
सती ने बल्लू जी को आशीर्वाद दिया- 'बेटा ! गौ,ब्राह्मण,धर्म और सती स्त्री की रक्षा
के लिए जो संकट उठाता है,
भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। आपनें आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। आपका यश
संसार में सदा अमर रहेगा।' बल्लू चम्पावत मुसलमानों से लड़ते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे उनका दाहसंस्कार
यमुना के किनारे पर हुआ उनके और उनके घोड़े की याद में वहां पर स्म्रति स्थल बनवाया गया जो अभी भी मौजूद है !

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

दाल बाटी का आविष्कार कैसे हुआ

दाल बाटी का आविष्कार कैसे हुआ 

बाटी मूलत: राजस्थान का पारंपरिक व्यंजन हैै। इसका इतिहास करीब 1300 साल पुराना है ।   8 वीं सदी में राजस्थान में बप्पा रावल ने मेवाड़ राजवंश की शुरुआत की। बप्पा रावल को मेवाड़ राजवंश का संस्थापक भी कहा जाता है। इस समय राजपूत सरदार अपने राज्यों का विस्तार कर रहे थे । इसके लिए युद्ध भी होते थे ।

इस दौरान ही बाटी बनने की शुरुआत हुई । दरअसल युद्ध के समय हजारों सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण काम होता था। कई बार सैनिक भूखे ही रह जाते थे। ऐसे ही एक बार एक सैनिक ने सुबह रोटी के लिए आटा गूंथा, लेकिन रोटी बनने से पहले युद्ध की घड़ी आ गई और सैनिक आटे की लोइयां रेगिस्तान की तपती रेत पर छोड़कर रणभूमि में चले गए। शाम को जब वे लौटे तो लोइयां गर्म रेत में दब चुकी थीं, जब उन्हें रेत से बाहर से निकाला तो दिनभर सूर्य और रेत की तपन से वे पूरी तरह सिक  चुकी थी। थककर चूर हो चुके सैनिकों ने इसे खाकर देखा तो यह बहुत स्वादिष्ट लगी। इसे पूरी सेना ने आपस में बांटकर खाया। बस यहीं इसका आविष्कार हुआ और नाम मिला बाटी। 

इसके बाद बाटी युद्ध के दौरान खाया जाने वाला पसंदीदा भोजन बन गया। अब रोज सुबह सैनिक आटे की गोलियां बनाकर रेत में दबाकर चले जाते और शाम को लौटकर उन्हें चटनी, अचार और रणभूमि में उपलब्ध ऊंटनी व बकरी के दूध से बने दही के साथ खाते। इस भोजन से उन्हें ऊर्जा भी मिलती और समय भी बचता। इसके बाद धीरे-धीरे यह पकवान पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया और यह कंडों पर बनने लगा।

अकबर के राजस्थान में आने की वजह से बाटी मुगल साम्राज्य तक भी पहुंच गई। मुगल खानसामे बाटी को बाफकर (उबालकर) बनाने लगे, इसे नाम दिया बाफला। इसके बाद यह पकवान देशभर में प्रसिद्ध हुआ और आज भी है और कई तरीकों से बनाया जाता है। 

अब बात करते हैं #दाल की। दक्षिण के कुछ व्यापारी मेवाड़ में रहने आए तो उन्होंने बाटी को दाल के साथ चूरकर खाना शुरू किया। यह जायका प्रसिद्ध  हो गया और आज भी दाल-बाटी का गठजोड़ बना हुआ है। उस दौरान पंचमेर दाल खाई जाती थी। यह पांच तरह की दाल चना, मूंग, उड़द, तुअर और मसूर से मिलकर बनाई जाती थी। इसमें सरसो के तेल या घी में तेज मसालों का तड़का होता था। 

अब #चूरमा की बारी आती है। यह मीठा पकवान अनजाने में ही बन गया। दरअसल एक बार मेवाड़ के गुहिलोत कबीले के रसोइये के हाथ से छूटकर बाटियां गन्ने के रस में गिर गई। इससे बाटी नरम हो गई और स्वादिष्ट भी। इसके बाद से इसे गन्ने के रस में डुबोकर बनाया जाना लगा। 
मिश्री, इलायची और ढेर सारा घी भी इसमें डलने लगा। बाटी को चूरकर बनाने के कारण इसका नाम चूरमा पड़ा।

           

बुधवार, 17 जून 2020

राष्टगान में राजस्थान का नाम क्यों नही ?

सवाल:::राष्टगान में राजस्थान का नाम क्यों नही
  (उत्तर::यह गौरव की बात है) 
  (क्योंकि राजपूताना अंग्रेजो का गुलाम नही था)

सर्वप्रथम यह गान 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था,जिसमे ब्रिटेन के राजा "जार्ज पँचम" मुख्य अथिति थे.....इस गान में राजा जार्ज पँचम को ही अधिनायक (सुपर हीरो) और "भारत का भाग्य विधाता" कहा गया था.
**28 दिसम्बर 1911 को कलकत्ता के अंग्रेजी दैनिक "The English man" अखबार ने यह कहा की यह "गीत ब्रिटेन के राजा जार्ज पँचम" के लिए खुशामदी में गाया गया था.
**इसके बाद कांग्रेस और रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत आलोचना हुई थी.
**लोगो ने रवींद्रनाथ टैगोर से इस पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही परन्तु वे चुप रहे.
**सन 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को "नोबेल पुरस्कार मिला था....यह पुरुस्कार उसी अधिनायक की कृपा से मिला....ऐसा लोगो का आरोप है.
**संविधान सभा ने जन-गण-मन हिंदुस्तान के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। 
(इस राष्ट्रगान में पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगाल एवं विन्ध्या हिमाचल प्रदेशो के नाम है,तथा यमुना और गंगा दो नदियों के नाम है.......परन्तु राजपुताना (राजस्थान) का नाम कंही नही है)

::::::::::::::::::::::सवाल:::जबाब ::::::::::::::::::::::::
***राजपुताना(राजस्थान) का नाम क्यों नही***

(1)दरअसल यह गीत ब्रिटेन के राजा जार्ज पँचम के गुणगान में गाया गया था....जो "ब्रिटिश इंडिया" के अधिनायक/शासक थे.
(2)जैसा कि सर्व विदित है #राजपुताने (राजस्थान) की सभी रियासते "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" थी....वो ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा नही थी.
" सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" का मतलब:- 
#राजपुताना (राजस्थान) के सभी राजा "हिज हाईनेश" कहलाते थे.... तथा जब भी ये राजा दिल्ली सरकारी यात्रा पर जाते थे तो उनको "तोपो की सलामी" दी जाती थी....तथा "लाल कालीन" बिछाया जाता था.
जैसा कि विदित है "हिज हाईनेश" शब्द तथा "तोपो की सलामी" विदेशी शासक जब भारत की यात्रा में आता है तो यह सम्मान दिया जाता है.
(4)भारत की सभी 562 रियासतों में से सिर्फ 108 रियासते "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" की श्रेणी में आती थी....राजस्थान के सभी के सभी राजा "सेल्यूटेड-प्रिंसली स्टेट" केटेगरी में थे.
(5)इन राजाओ से ब्रिटेन ने सन 1818 में जो संधि की थी, वह सिर्फ विदेश नीति के मामले तक मे थी.
(6)"सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" के अंदरूनी मामलों पर ब्रिटेन का कोई हस्तक्षेप नही था.....राजपुताना (राजस्थान) की सभी 22 रियासतें खुद अपने आप मे Governments थीं.
जैसे:-
Government of JODHPUR
Government of JAIPUR
Government of UDAIPUR
Government of BIKANER
Government of KOTA
Government of BUNDI
Government of SIROHI
Government of BHARATPUR
आदि ...इस तरह सब
(8)राजपुताना(राजस्थान)में ब्रिटिश इंडिया के कानून नही चलते थे....प्रमाण के लिये स्टेट टाइम का कोई भी सरकारी कागजात आपके घर मे पड़ा हो तो चेक कर लेंवे.
(9)जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल,बिहार, पंजाब,महाराष्ट्र, गुजरात,सिंध आदि "ब्रिटिश इंडिया" का हिस्सा थे.
(10)जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए थे.....तब उन्होंने सिर्फ "ब्रिटिश इंडिया" को आजाद किया था..."प्रिंसली स्टेट"को नही...अंग्रेजों ने राजाओ से जो सन्धि सन 1818 में की थी उसको रद्द करके गए थे.
(11)1947 में सभी प्रिंसली स्टेज के राजा पुनः सपूर्ण अधिकार से सम्प्रभुता संपन्न शासक हो गए थे.....वह स्वतंत्र थे चाहे भारत मे मिले या पाकिस्तान में या स्वतंत्रत रहे.
:::::::::यही कारण है की ::::राष्टगान में राजस्थान का नाम नही है ::::::::
(1)जब "सेल्यूटेड प्रिंसली स्टेट" ब्रिटेन के अधीन थी ही नही ....तो फिर राष्टगान में नाम नही लिख सकते थे.....क्योंकि इन स्टेट के भाग्यविधाता इनके राजा थे....न कि जार्ज पंचम.
(2)उस वक्त हर प्रिंसली स्टेट का खुद का "राष्टगान" तथा झण्डा होता था.
जैसे जोधपुर स्टेट का राष्टगान था ...
"धूंसो बाजे छे महाराजा थारो मारवाड़ में...."
तथा
ध्वज :"पंचरंगा" झंडा था....जो अभी भी किले और "उम्मेद भवन" पर लगा हुआ है.

अतः राष्टगान में राजस्थान का नाम नही होना गौरव की बात थी....क्योंकि राजपुताना (राजस्थान) अंग्रेजों का गुलाम नही रहा....
जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल,बिहार, पंजाब,महाराष्ट्र, गुजरात,सिंध आदि राज्य "ब्रिटिश इंडिया" का हिस्सा थे और अंग्रेजों के गुलाम थे।

अमर सिंह चौहान

मंगलवार, 19 मई 2020

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

कोरोना सूं निपटण रौ मारवाड़ी तरीकौ

- किण सूं भी सीधे मूंडै बात नही करणी।
- भूसाघड़ जी नै भी मूंडै नही लगावणो।
- असींदो मिनख देखतां ई मूंडो फेर लेवणो।
- नरम हुवण री जरूरत कोणी, अकड़ियोडो छोडो व्हे ज्यूं रेवणो।
- किणनै ई नैड़ो नी फटकण देवणो।
- बिना मूमती बांधियाँ कोई दीसे तौ दो ठोला धरणा।
- जै कोई छींकण नै मूंडो ऊंचो करे फट आगौ हू जावणो।
- फूट लै, आगो बळ सबदां रौ जादा सूं जादा प्रयोग करणो।
- दीनुगै चरचरे पाणी रा कम सूं कम दो गिलास अरोगणा।
- तुलछी, अदरक, लूंग, पोदीणौ  चेपण माथै जोर राखणो।

इत्ती हावचेती राख ली तौ कोरोणा रा दा'जी भी थारों कीं नी बिगाड़ सकै। बाकी थांरली मरजी। थै जाणो नै थारां काम।

सोमवार, 18 मई 2020

संत पीपा

संत पीपा जी का जन्म 1426 ईसवी में राजस्थान में कोटा से 45 मील पूर्व दिशा में गगनौरगढ़ रियासत में हुआ था।
इनके बचपन का नाम राजकुमार प्रतापसिंह था और लक्ष्मीवती इनकी माता थीं।
पीपा जी ने रामानंद से दीक्षा लेकर राजस्थान में निर्गुण भक्ति परम्परा का सूत्रपात किया था।
दर्जी समुदाय के लोग संत पीपा जी को आपना आराध्य देव मानते हैं।
बाड़मेर ज़िले के समदड़ी कस्बे में संत पीपा का एक विशाल मंदिर बना हुआ है, जहाँ हर वर्ष विशाल मेला लगत है। इसके अतिरिक्त गागरोन (झालावाड़) एवं मसुरिया (जोधपुर) में भी इनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है।
संत पीपाजी ने "चिंतावानी जोग" नामक गुटका की रचना की थी, जिसका लिपि काल संवत 1868 दिया गया है।
पीपा जी ने अपना अंतिम समय टोंक के टोडा गाँव में बिताया था और वहीं पर चैत्र माह की कृष्ण पक्ष नवमी को इनका निधन हुआ, जो आज भी 'पीपाजी की गुफ़ा' के नाम से प्रसिद्ध है।
गुरु नानक देव ने इनकी रचना इनके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की थी। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव ने 'गुरु ग्रंथ साहिब' में जगह दी थी।