मंगलवार, 14 जून 2016

ईब आया

एक बै एक छोरा भाज्या
भाज्या आया अर एक बूढे त
बोल्या
छोरा - ताऊ तेरे दाँत सैं?
ताऊ - ना बेटा मेरे तो कोनी..
के बात?
छोरा - ओहोहो ठीक स ताऊ
ले फेर ये मेरे
भूंगड़े पकड़ ले.. मै ईब आया।

मंगलवार, 7 जून 2016

जलती रही जौहर में नारियॉ

जलती रही जौहर में नारियॉं
भेड़िये फिर भी मौन थे.!
हमे पढ़ाया अकबर महान
तो फिर 'महाराणा' कौन थे.?
क्या वो नहीं महान जो बड़ी-२
सेनाओं पर चढ़ जाता था.!
या फिर वो महान था जो सपने
में प्रताप को देख डर जाता था.!!
रणभूमि में जिनके हौसले
दुश्मनों पर भारी पड़ते थे.!
ये वो भूमि है जहॉ पर नरमुण्ड
घण्टो तक लड़ते थे.!!
रानियों का सौन्दर्य सुनकर
वो वहसी कई बार यहाँ आए.!
धन्य थी वो स्त्रियाँ,जिनकी
अस्थियाँ तक छू नहीं पाए.!!
अपने सिंहो को वो सिंहनिया
फौलाद बना देती थी.!
जरुरत जब पड़ती,काटकर
शीश थाल सजा देती थी.!!
पराजय जिनको कभी सपने
में भी स्वीकार नही थी.!
अपने प्राणों को मोह करे,वो
पीढी इतनी गद्धार नहीं थी.!!
वो दुश्मनों को पकड़कर
निचोड़ दिया करते थे.!
पर उनकी बेगमों को भी
माँ कहकर छोड़ देते थे.!!
तो सुनो यारों एेसे वहशी
दरिन्दो का जाप मत करो.!
वीर सपूतों को बदनाम करने
का पाप अब मत करो.!!

सोमवार, 6 जून 2016

शिवलिंग बणायो है

थे मुहंगा मोती चुण
                  हार बणायो है ।
बातां री सखरी पालिस
                  सूं चमकायो है ।
पण सुण चतर चुगल
                  सुजान भायला !,
म्हे दसकूंटै भाठै सूं
               शिवलिंग बणायो है ।
      
             

खेत री ढाणी

रामुड़ै रै
खेत री ढाणी बल़गी  ।
बो रोवै हो
गिड़गिड़ावै हो
नेताजी रै आगै   ।
कै म्हारै जरुरी
काम रो सामान
सगल़ौ ई बल़ग्यो  ।
नेताजी
गोर सूं देखै हा
कै ओ आपणै
जरुरी काम रो
सामान है, कै कोनी ।

         

शनिवार, 28 मई 2016

ई ल्यो

ई ल्यो....

बिमारी हो रही थी ब्रेड से और लोग समझ रहे थे कि तम्बाकू और दारु से हो रही है

___वीरांगना क्षत्राणीयों के पराक्रम के विषय में

___वीरांगना क्षत्राणीयों के पराक्रम के विषय में

राजपूतों की वीरता की बातें तो सारी दुनिया करती है। बाप्पा रावल ,खुमाण,हमीर कुम्भा ,राणा सांगा , महाराणा प्रताप,शिवाजी ,चंद्रसेन ,पृथ्वीराज चौहान ,गोरा-बादल,जयमल-फत्ता ,कल्लाजी , वीर दुर्गादास ,अमर सिंह राठोड़ ,छत्रसाल ,बंदा बैरागी जैसे अनगिनत नाम हैं जिनकी वीरता और बलिदानको विश्व नमन करता है पर ऐसे सिंहों को जन्म देने वाली सिंहनियों की महिमा अतुल्य है। पद्मिनी ,रानी कर्मावती ,राणी भटियाणी ,जीजाबाई, हाड़ी राणी ,पन्ना ,दुर्गावती, झाँसी की रानी आदि के त्याग और बलिदान का स्थान इनसे भी कहीं ऊपर है. धन्य हैं वे राजपूत स्त्रियां जिन्होंने अपना सर काट कर पति को मोह छोड़ रणभूमि में मरने को उद्यत किया ,धन्य हैं वो माएँ जिन्होंने त्याग और बलिदान के ऐसे संस्कार राजपुत्रों में जन्म से ही सिंचित किए।

चारण कवि वीर रसावतार सूर्यमल्ल मीसण ने "वीर सतसई "में ऐसी ही वीरांगनाओं की कोटि कोटि बलिहारी जाते हुए कहा है।
हूँ बलिहारी राणियां ,थाल बजाने दीह
बींद जमीं रा जे जणे ,सांकळ हीठा सीह।
(मैं उन राजपूत माताओं की बलिहारी हूँ जिन्होंने सिंह के समान धरती के स्वामी राजपूत सिंहों को जन्म दिया. )

बेटा दूध उजाळियो ,तू कट पड़ियो जुद्ध।
नीर न आवै मो नयन ,पण थन आवै दूध।
( माँ कहती है बेटे तू मेरे दूध को मत लजाना ,युद्ध में पीठ मत दिखाना ,वीर की तरह मरना तेरे बलिदान पर मेरे आँखोंमें अश्रु नहीं पर हर्ष से मेरे स्तनों में दूध उमड़ेगा)

गिध्धणि और निःशंक भख ,जम्बुक राह म जाह।
पण धन रो किम पेखही ,नयन बिनठ्ठा नाह ।
( युद्ध में घायल पति के अंगों को गिद्ध खा रहे हैं ,इस पर वीर पत्नी गिध्धणी से कहती है ,तू और सब अंग खाना पर मेरे पति के चक्षु छोड़ देना ताकि वो मुझे चिता पर चढ़ते देख सकें. )

इला न देणी आपणी ,हालरिया हुलराय।
पूत सिखावै पालनैं ,मरण बड़ाई माय।
(बेटे को झूला झुलाते हुए वीर माता कहती है पुत्र अपनी धरती जीते जी किसी को मत देना ,इस प्रकार वह बचपन की लोरी में ही वीरता पूर्वक मरने का महत्त्व पुत्र को समझा देती है। )हिंद की राजपुतानीया ***

यह रचना हिंदी, गुजराती, चारणी भाषा मे है, जिसमे हिंदुस्तान की राजराणी व क्षत्रियाणी का चित्र है, उसका वर्तन, रहेणीकहेणी, राजकाज मे भाग, बाल-उछेर और शुद्धता का आदर्श है. उसका स्वमान, उसकी देशदाझ, रण मे पुत्र की मृत्यु की खबर सुन वो गीत गाती है, पुत्र प्रेम के आवेश मे उसे आंसु नही आते, लेकिन जब पुत्र रण से भागकर आता है तो उसे अपना जिवन कडवा जहर लगने लगता है, उसका आतिथ्य, गलत राह पर चडे पति के प्रति तिरस्कार, रण मे जा रहा पति स्त्रीमोह मे पीछे हटे तो शीष काटकर पति के गले मे खुद गांठ बांध देती है. फिर किसके मोह मे राजपुत वापिस आये?

उसके धावण से गीता झरती है, उसके हालरडे मे रामायण गुंझती है, भय जैसा शब्द उसके शब्द कोश मे नही है. उसका कूटुंबवात्सल्य., सास-ससुर और जेठ के प्रति पूज्य भाव, दास-दासी पर माता जैसा हेत लेकिन बाहर से कठोर, पति की रणमरण की बात सुन रोती नही अपितु घायल फौज के अग्र हो रणहांक गजाती है. एसी आर्यवर्त की राजपुतानी भोगनी नही, जोगनी है. राजपुतो मे आज एसी राजपुतानीयो के अभाव से काफी खोट पड गयी है...इसी बात का विवरण इस रचना मे है...

अरि फौज चडे, रणहाक पडे,
रजपुत चडे राजधानियां का,
तलवार वडे सनमुख लडे,
केते शीश दडेय जुवानियां का,
रण पुत मरे, मुख गान करे,
पय थान भरे अभिमानियां का,
बेटा जुद्ध तजे, सुणी प्राण तजे,
सोई जीवन राजपुतानियां का.....

रण तात मरे, सुत भ्रात मरे,
निज नाथ मरे, नही रोवती थी,
सब घायल फोज को एक करी,
तलवार धरी रण झुझती थी,
समशेर झडी शिर जिलती थी,
अरि फोज का पांव हठावती थी,
कवि वृंद को गीत गवावती थी,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....
अभियागत द्वार पे देखती वे,
निज हाथ से थाल बनावती थी,
मिजबान को भोजन भेद बिना,
निज पूत समान जिमावती थी,
सनमान करी फिर दान करी,
चित्त लोभ का लंछन मानती थी,
अपमानती थी मनमोह बडा,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....

रण काज बडे, रजपुत चडे,
और द्वार खडे मन सोचती थी,
मेरा मोह बडा, ईसी काज खडा,
फिर शीश दडा जिमी काटती थी,
मन शेश लटा सम केश पटा,
पतिदेव को हार पे'नावती थी,
जमदूतनी थीं, अबधूतनी थीं,
सोई हिंद की राजपुतानियां थी.....

आज वीर कीं, धीर कीं खोट पडी,
पडी खोट उदारन दानियां कीं,
प्रजापाल दयाल की खोट पडीं,
पडी खोट दीसे मतिवानियां कीं,
गीता ज्ञान कीं, ध्यान कीं खोट पडीं,
पडी खोट महा राजधानियां कीं,
सब खोट का कारन 'काग' कहे,
पडी खोट वे राजपूतानियां कीं.....

साभार - कवि दुला भाया 'काग'

गुरुवार, 26 मई 2016

ऐ राठौड़  कयामे आवे ?

मै काल जोधपुर जावे हो जद मेरे साथ आली सीट पर बेठयो भाई पूछे।
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के जात ह भाईजी ?
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मे केयो राठौड़.

फेर केवे भाईजी ऐ राठौड़  कयामे आवे ?
.
मे केओ भाया रूपया होवे जद तो फॉर्च्यूनर में आवे
नही तो बस मे आवे !