आखर और टाबर
(तर्ज-पातल और पीथल)
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अरे देश री शिक्षा में,अधिकार बीज रो ज्यो बोग्यो।
नाना सा टाबर डौल रह्या,जीवण में अंधारो सो छाग्यो।
हूँ लड़्यो घणो हूँ सह्यो घणो,शाला रो मान बचावण नै।
हूँ पाछ नहीं राखी कुछ भी,शाला परिणाम बढ़ावण नै।
जद स्टाफ पैटरण याद करुं,पद खाली आज नजर आवै।
कक्षाएं ठाली बैठी है,बिन शिक्षक कौन भणा पावै।
कान मेरा सूना पड़ग्या ,कक्षों से आती सीटी से।
शिक्षक रो धर्म कियां निभसी,सब चौपट होग्या नीति से।
एकीकरण आदर्शीकरण, मूंडा में ज्यूँ रोटी ताती।
कलमां री स्याही चीख पड़ी,मत लिख कौन पढ़ै पाती।
पण शिक्षक हियो बोल उठ्यो,शाला री पाग पगां में है।
सारे जग रो हूँ कर्ता धर्ता,ब्रह्मा रो खून रगा में है।
हूँ नेट भरुं , अपलोड करुं, डाकां ई मेल आबाद रहे।
हूँ घोर अभावां में भटकूँ,पर शाला दरपण याद रहे।
शिक्षक री खिमता छीण भई,इक हाथ बजातां ताली नै।
शिक्षक री हाथल टूट गई,अब बाग हँसे खुद माली नै।
-कीर के तीर
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रविवार, 7 फ़रवरी 2016
आखर और टाबर
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