वे दिन पाछा आसी काई?
जन बियाव में "भुंगल" माथे गाना बाजता के " वो परी कहाँ से लाउ, तेरी दुल्हन किसे बनाऊ" अर आधा जूना अर आधा नवा टेंट में निचे बिच्योड़ी दरिया माथे जिमता।
खाने में नुक्ति, खिचड़ी, पकौड़ी, लापसी, पूड़ियां, मिर्चा और चिना री कढ़ी होवती। जद टाबर सबसु पहला जिमता ने जिमावनिया घर-बास रा मिनख हुवता। जद मोटा ने मनुवार सु ने छोटा ने सावचेति सु जीमण परोसता।
टाबर जिमता ही जावता ने केवता-
" ओ भाईसा। थोड़ी नुक्ति घालो तो।"
जबाब मिळतो।
" पेला। पकौड़ियां खत्म करो।
टेम तो आज भी चोखो है, बियाव में जगमग टेंटा में पचास तरीके रा जीमण बने पण जिमवनिया सब भाड़े रा मिनख हुए। रोटियां खोसनि पड़े अर मिठाई मांग ने खावनि पड़े। घर धनि रा लाखो रूपया लागे पण बरातिया अर घरवाला रा पेट तो भरज्या पण मन नी धापीजे।