21 नवं. क्रांतीकारी केसरी सिंह जी बारहठ जयंती पर संस्मरण
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आदरणीय ठा. साहब के जीवन संघर्ष में पग पग पर साथ दिया उनकी सहधर्मिणी पुज्या माणक कँवर ने.
भारत माता स्वरूपा माणक बा ने ह्रदय को पत्थर से भी कठोर बना कर पुत्र वियोग ताउम्र सहन करके भी कर्तव्य पथ पर विचलित नहीं हुई.
बारहठजी नें काव्यमय पुण्य स्मरण में जो वर्णन किया इससे अधिक कोई अन्य क्या मूल्यांकन करेगा उस महान नारी का| भगवान एसी मां सबको दे.प्रताप जननी के रूप में बारहठ जी नें उनकी स्तुति की है.
" घाव दुःख सह लिये , कुछ धीर हुं अभिमान था |
किन्तु सच आधार में ' प्राणेश्वरी का प्राण था ||
इस ' मणि' बिन हो गयी , अंधारमयी सारी मही |
पतित पावन दीनबंधो, शरण इक तेरी गही ||
आज भी माणक भवन कोटा का वह चबुतरा जन जन का पुज्य स्थान है जहां हमारे सबके आदर्श दम्पती अस्थियों के स्वरूप में इस चबुतरे के गर्भ में प्रतिष्ठापित है. जहां उनकी स्मृति में अपनी मनोव्यथा ठा. साहब ने शब्दों मे व्यक्त की है -------------
विपदाघन सिर पर जुटे,
उठे सकल आधार
ग्राम धाम सब ही लुटे
बिछुटे प्रिये परिवार......
बरस चतुर्दश विपति के
ढाये गजब बलाय
कहा दशा मो दीन की
राम ही दिये रूलाय
राम सिया के साथ में
पुनि सनाथ गृह कीन
हन्त विपत्ति के अन्त में
मेरी ' मणि' रही न.