अस्पताल में एक बच्चा पैदा होते ही नर्स से बोला :"भूख लगी है नाश्ते में क्या है?"
नर्स :"बाजरे की रोटी और सांगरी की सब्जी।"
बच्चा :"इंकी नानी न रोऊं, फेर राजस्थान मं आग्यो के !!!!?"
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अस्पताल में एक बच्चा पैदा होते ही नर्स से बोला :"भूख लगी है नाश्ते में क्या है?"
नर्स :"बाजरे की रोटी और सांगरी की सब्जी।"
बच्चा :"इंकी नानी न रोऊं, फेर राजस्थान मं आग्यो के !!!!?"
~एक बार एक गणित के अध्यापक से उसकी
पत्नी ने गणित मे प्यार के दो शब्द कहने को कहा,
पति ने पूरी कविता लिख दी ~
म्हारी गुणनखण्ड सी नार, कालजो मत बाल
थन समझाऊँ बार हजार,
कालजो मत बाल
1. दशमलव सी आँख्या थारी,
न्यून कोण सा कान,
त्रिभुज जेडो नाक,
नाक री नथनी ने त्रिज्या जाण,
कालजो मत बाल
2. वक्र रेखा सी पलका थारी,
सरल भिन्न सा दाँत,
समषट्भुज सा मुंडा पे,
थारे मांख्या की बारात,
कालजो मत बाल
3.रेखाखण्ड सरीखी टांगा थारी,
बेलन जेडा हाथ,
मंझला कोष्ठक सा होंठा पर,
टप-टप पड रही लार,
कालजो मत बाल
4.आयत जेडी पूरी काया थारी,
जाणे ना हानि लाभ,
तू ल.स.प., मू म.स.प.,
चुप कर घन घनाभ,
कालजो मत बाल
5.थारा म्हारा गुणा स्युं.
यो फुटया म्हारा भाग ।
आरोही -अवरोही हो गयो,
मुंडे आ गिया झाग ।
कालजो मत बाल
म्हारी गुणनखण्ड सी नार कालजो मत बाल
थन समझाऊँ बार हजार कालजो मत बाल —
दारू दुसमण देह री, नेह घटादे नैण।
इज्जत जावै आप री, लाजां मरसी सैण।१।
दारू तो अल़घी भली, मत पीवो थे आज ।
कूंडो काया रो करै, घर मैं करै अकाज।२।
मद मत पीवो मानवी, मद सूं घटसी मान।
धन गंवास्यो गांठ रो, मिनखां मांही शान।३।
दारू री आ लत बुरी, कोडी करै बजार।
लाखीणै सै मिनख रा, टका कर दे च्यार।४।
दारू रा दरसण बुरा, माङी उणा री गत।
ज्यांरै मूँ दारू लगी, पङी जिणां नै लत।५।
ढ़ोला दारू छोङदे, नींतर मारू छोङ।
मद पीतां मरवण कठै, जासी काया छोङ।६।
मदछकिया छैला सुणो, देवो दारू छोङ।
नित भंजैला माजनू, जासी मूछ मरोङ।७।
दारू दाल़द दायनी, मत ना राखो सीर।
लाखीणी इज्जत मिटै, घर रो घटसी नीर।८।
दारू देवै दुःख घणा, घर रो देवै भेद।
धण रो हल़को हाथ ह्वै, रोक सकै ना बैद।९।
धण तो दुखियारी रहै, दुख पावै औलाद।
जिण रै घर दारू बसै, सुख सकै नहीं लाध।१०।
मिनख जूण दोरी मिलै, मत खो दारू पी'र।
धूल़ सटै क्यूं डांगरा, मती गमावै हीर।११।
दारू न्यूतै बण सजन, दोखी उणनै जाण।
दूर राखजे कर जतन, मत करजे सम्मान।१२।
दारू सुण दातार है, घणां कैवला लोग।
मत भुल़ ज्याई बावल़ा, मती लगाजे रोग।१३।
गाफल मत ना होयजे, मद पीके मतवाल।
लत लागी तो बावल़ा, राम नहीं रूखाल़।१४।
रैज्ये मद सूं आंतरो, सदां सदां सिरदार।
ओगणगारी मद बुरी, मत मानी मनवार।१५।
मद री मनवारां करै, नीं बो थारो सैण।
दूर भला इसङा सजन, मती मिलाज्यो नैण।१६।
जे सुख चावो जीव रो, दारू राखो दूर।
घर रा सै सोरा जिवै, आप जिवो भरपूर।१७।
गढ़'र कोट सै खायगी, दारू दिया डबोय।
अजै नहीं जे छोडस्यो, टाबर करमा रोय।१८।
दुख पावैली टाबरी, दे दे करमा हाथ।
परिवारां जे सुख चहै, छोङो दारू (रो) साथ।१९।
कवि ओ अरजी करै, मद नै जावो भूल।
मिनख जमारो भायला, कींकर करो फजूल।२०।
पीथल और पाथल
कन्हैयालाल
सेठिया
अरे घास री रोटी ही, जद बन
बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो,
राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाडी
मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो
खून बहावण नै ||
जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणा में रगत
उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकडो, सूती सी
हूक जगा जावै ||
पण आज बिलखतो देखूं हूं, जद राजकंवर
नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं
हिन्वाणी चोटौ नै ||
आ सोच हुई दो टूक तडक, राणा री
भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिख्स्यूं
अकबर नै पाती ||
राणा रो कागद बांच हुयो, अकबर
रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच
बांच नै फिर बांच्यो ||
बस दूत इसारो पा भाज्यो, पीथल ने
तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर
रो भरम मिटावण नै ||
म्हे बांध लिये है पीथल ! सुण पिजंरा में
जंगली सेर पकड |
यो देख हाथ रो कागद है, तू देका
फिरसी कियां अकड ||
हूं आज पातस्या धरती रो, मेवाडी
पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै, रजुॡती खूण
रगां में है ||
जद पीथल कागद ले देखी, राणा री
सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में
भर आयो पाणी ||
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात
सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची, राणा री
आन अटूटी है ||
ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं, राणा नै
कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही
बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है नाहरियो, स्याला रै
सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजडो, बादल री
आंटा खोवैलो ||
पीथल रा आखर पढ़ता ही, राणा री
आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक
दकाल हुई ||
हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं, मेवाड धरा
आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां
री याद रह्वै ||
पीथल के खिमता बादल री, जो रोकै
सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख
मिली कद स्याली नै ||
जद राणा रो संदेस गयो, पीथल री
छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री
दुनिया सुनी ही ||
डॉ: कितने पैग पीते हो ?
Patient: आठ
डॉ: चार कर दो एक हफ्ते बाद आना।एक हफ्ते बाद
,डॉ: कैसा लग रहा है????
Patient: बहुत अच्छा
डॉ: अब दो कर दो, एक हफ्ते बाद आना..एक हफ्ते बाद
,डॉ: अब कैसा लग रहा है ?
Patient: बहुत अच्छा.
डॉ: ठीक है अब एक पैग कर दो
Patient: नहीं करूंगा बिलकुल नहीं करूंगा।मैं पहले पूरी बोतल के आठ पैग बनाता था और आपने आठ से चार करवा दिये, चार से दो करवा दिये।अब दो से एक कैसे करूँ?बाजार में इतना बड़ा गिलास नहीं मिलता कि पूरी बोतल उस में आ जाये।Cheers
एक बार गांव के स्कूल में नये
मास्टर ने कहा आज से सब
हिंदी बोलेंगे,,,
थोडी देर बाद में पिछे से
आवाज आयी
"सरजी "रामुडा लारे से डुका मार रहा हे" 'कुचरणी' कर
रहा है....
भैरव स्तवन
दोहा
तिरभंगी छंदों तवन, नमन भैरवा नाथ।
कथूं जिताडौ कासपत
, भव रौ औ भाराथ॥
छंद त्रिभंगी
काशी रा काळा, दीन दयाळा,वीर वडाळा, वपु -बाळा।
कर दंड कराळा, डाक-डमाळा, चम्मर वाळा,खपराळा।
मथ अहि मुगटाळा, ललित लटाळा, घूंघरवाळा, छमां छमा।
खं खेतरपाळा, रह रखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥1
वपु राख रमावै, स्वान सजावै,मोद मनावै, हरखावै।
डमरू डणकावै,नाच नचावै, घन गहरावै ,गूंजावै।
बोलै बिरदावै, आफत आवै, कष्ट कपावै, अमां तमां।
खं खेतरपाळा, रह रखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥2
लखनव रे भेळौ, चामँड चेलो, आप अकेलौ, अलबेलो।
तन सिंदुर-तेलो, बहु बबरेलो, जग जबरेलौ, नाचैलो।
किलकार करैलौ, छम छम छैलौ, सबसू प्हैलौ, खमा खमा।
खं खेतरपाळा, रह ररखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥3
वपु धर अहि वाळौ, सहस फणाळौ, वळ विखवाळौ, घण काळौ।
नव हथौ निहाळौ, मथ मणियाळौ, मूंछां वाळौ, मतवाळौ।
बावन बबराळौ, बांबी वाळौ, कर किरमाळौ, चलै छमां।
खं खेतरपाळा, रूप निराळा, रह रखवाळा, नमां नमां॥4
डमरू डम डम्मा, घूंघर घम्मा, ठोल ढमम्मा, ढम ढम्मा।
बाजै डक बम्मा, झांझ झमम्मा,थणणण थम्मा, थै थम्मा।
छम छम रव छम्मा, पद परिकम्मा ,नाच नचम्मा, घणी खमा।
खं खेतरपाळा, रह ररखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥5
दारू दाखांळी, लो लाखांळी, कढी कलाळी, तज-वाळी।
एलच लोंगाळी, मँह वरियाळी, दाडम वाळी, गुड -गाळी।
पीवौ भर प्याली,घण गाढाळी, आप कपाली, ले हथमां।
खं खेतरपाळा,रह रखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥6
जीमौ जबरैला, चंडी चेला, सबसूं पैला, फळ- केळा।
चूरमियौ छैला, गुळ घी भेळा ,नित नारेळा , हर वेळा।
घण धूप घुपैला, सरस सवेळा, दीप जळैला, सांझ समां।
खं खेतरपाळा,रह रखवाळा, रूप निराळा, नमां नमां॥7
म्हानै मांमा रो, सदा सहारौ, अर पतियारौ, बस थारौ।
जड पातक जारौ, आप उगारौ, भव रो भारौ, घण भारौ।
सब संकट टारौ, नरपत वारौ,भैरू म्हारौ, दुःख दमां।
खं खेतरपाळा, रह रखवाळा,रूप निराळा, नमां नमा॥8
कलस छप्पय
डमरू डाक डमाल,
झांझ डफ ढोलक बाजै।
मादळ-भेरी मृदंग,
घणै रव गहरै गाजै।
मंदिर मँह मंजीर,
नगारो धुरै निराळो।
खेलै खेतरपाळ,
मुदित मांमौ मतवाळौ।
नित नाचै नखराळौ नमन, लांगडियौ लटियाळ औ।
शुभ लाभ करै "नरपत" सदा,
विघन विदारणवाळ औ॥
वैतालिक