शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनका परिचय

राजस्थान का एक भी जिला मुगलों के नाम पर नहीं हैं और शेष भारत में ढेरों हैं....!!

राजस्थान के 33 जिले हैं जिनके नाम हैं..._
01) गंगानगर
02) बीकानेर
03) जैसलमेर
04) बाडमेर
05) जालोर
06) सिरोही
07) उदयपुर
08) डूंगरपुर
09) बांसवाड़ा
10) प्रतापगढ़
11) चित्तौड़गढ़
12) झालावाड़
13) कोटा
14) बारां
15) सवाईमाधोपुर
16) करौली
17) धौलपुर
18) भरतपुर
19) अलवर
20) जयपुर
21) सीकर
22) झुंझुनू
23) चूरु
24) भीलवाड़ा
25) हनुमानगढ़
26) नागौर
27) जोधपुर
28) पाली
29) अजमेर
30) बूंदी
31) राजसमंद
32) टोंक
33) दौसा.!!

कृपया इन नामों पर ध्यान दीजिए, नाम से ही पता चलता है कि राजपूतों ने क्या और कैसे किया.....

*अब जिलों का परिचय:-*

*अजमेर* :- अजमेर 
27 मार्च 1112 में चौहान राजपूत वंश के  तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया...!!

*बीकानेर* :- बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश
राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा.!!

*गंगानगर* :- महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा.!!

*जैसलमेर* :- जैसलमेर
महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया.!!

*उदयपुर* :- महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा..!!

*बाड़मेर* :- बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया.!!

*जालौर* :- जालौर की नींव 10वी  शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई! बाद में चौहान राठौड़, सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया..!!

*सिरोही* :- राव सोभा जी के 
पुत्र शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी 
उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी में वैशाख के दूसरे दिन द्वितिया पर सिरोही किले की नींव रखी..!!

*डूंगरपुर* :- वागड़ के राजा डूंगरसिंह ने ई.1358 में डूंगरपुर नगर की स्थापना की! बाबर के समय में उदयसिंह वागड़ का राजा था जिसने मेवाड़ के महाराणा के संग्रामसिंह के साथ मिलकर खानुआ के मैदान में बाबर का मार्ग रोका था..!!

*प्रतापगढ़* :- प्रताप सिंह महारावत ने बसाया..!!

*चित्तौड़*:- स्वाभिमान शौर्य त्याग वीरता राजपुताना की शान! 
चित्तौड़ सिसोदिया गहलोत वंश ने बहुत शासन किया ! बप्पा रावल महाराणा प्रताप सिंह जी यहाँ षासन किया..!!

*हनुमानगढ़* :- भटनेर दुर्ग 285 ईसा में भाटी वंश के राजा भूपत सिंह भाटी ने बनवाया इस लिए इसे भटनेर कहाँ जाता हैं! मंगलवार को दुर्ग की स्थापना होने कारण हनुमान जी के नाम पर हनुमानगढ़ कहाँ जाता हैं..!!

*जोधपुर* :- राव जोधा ने 12 मई 1459 ई. में आधुनिक जोधपुर शहर की स्थापना की.!!

*राजसमंद* :- शहर और जिले का नाम मेवाड़ के राणा राज सिंह द्वारा 17 वीं सदी में निर्मित एक कृत्रिम झील! राजसमन्द झील के नाम से लिया गया हैं..!!

*बूंदी* :- इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की
कहा जाता हैं कि बून्दा मीणा ने बूंदी की स्थापना की थी तभी से इसका नाम बूंदी हो गया..!!

*सीकर* :- सीकर जिले को वीरभान ने बसाया ओर वीरभान का बास सीकर का पुराना नाम दिया.!!

*पाली* :- महाराणा प्रताप की जन्मस्थली एवं महाराणा उदयसिंह का ससुराल हैं पाली मूलतया पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया हैं.!!

*भीलवाड़ा* :- किवदंती हैं कि इस शहर का नाम यहां की स्‍थानीय जनजाति भील के नाम पर पड़ता हैं! जिन्‍होंने 16वीं शताब्‍दी में अकबर के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की मदद की थी! तभी से इस जगह का नाम भीलवाड़ा पड़ गया..!!

*करौली* :- इसकी स्‍थापना 955 ई. के आसपास राजा विजय पाल ने की थी जिनके बारे में कहाँ जाता हैं कि वे भगवान कृष्‍ण के वंशज थे.!!

*सवाई माधोपुर* :- राजा माधोसिंह ने ही शहर बसाया और इसका नाम सवाई माधोपुर दिया..!!

*जयपुर* :-जयपुर शहर की स्थापना सवाई जयसिंह ने 1727 में की सवाई प्रताप सिंह से लेकर सवाई मान सिंह द्वितीय तक कई राजाओं ने शहर को बसाया..!!

*नागौर* :- नागौर दुर्ग भारत के प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाये गये दुर्गों में से एक हैं! माना जाता हैं कि इस दुर्ग के मूल निर्माता नाग क्षत्रिय थे! नाग जाति महाभारत काल से भी कई हजार साल पुरानी थी! यह आर्यों की ही एक शाखा थी तथा ईक्ष्वाकु वंश से किसी समय अलग हुई..!!

*अलवर* :- कछवाहा राजपूत राजवंश द्वारा शासित एक रियासत थी। जिसकी राजधानी अलवर नगर में थी
रियासत की स्थापना 1770 में प्रभात सिंह प्रभाकर ने की थी..!!

*धौलपुर* :- मूल रूप से यह नगर ग्याहरवीं शताब्दी में राजा धोलन देव ने बसाया था! पहले इसका नाम धवलपुर था
अपभ्रंश होकर इसका नाम धौलपुर में बदल गया..!!

*झालावाड़* :- झालावाड़ गढ़ भवन का निर्माण राज्य के प्रथम नरेश महाराजराणा मदन सिंह झाला ने सन 1840 में करवाया था..!!

*दौसा* :- बड़गूजरों द्वारा करवाया गया था! बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया..!!


 🙏🙏

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

ठंड पडे़ है ठाकरां...



ठंड पडे़ है ठाकरां , काठा पहनो कोट ।
दूध गटकाओ रात में,रंजर जीमो रोट॥

ठंड पडे है जोरकी,पतली लागे सौड़।
चाय पकौड़ी मूंफली, इण सर्दी रो तोड़ ॥

डांफर चाले भूंडकी ,चोवण लाग्यो नाक ।
कांमल राखां ओडके,सिगडी तापां हाथ ॥

काया धुझे ठाठरे, मुँडो छोडे भाफ ।
दिनुगे पेली चावडी, नहानो धोनो पाप ॥

गूदड़ माथे गुदड़ा , ओढंया राखो आप ।। 
ताता चेपो गुलगुला , चाय पिओ अणमाप।।। 

आप सबां ने सियाले री खम्मा घणी सा

अमर सिंह राठौड़ (नागौर के राजा)

भरे दरबार मे शाहजहाँ के साले सलावत खान ने अमर सिंह राठौड़ (नागौर राजा) को हिन्दू और काफ़िर कह कर गालियाँ बकनी शुरू की और सभी मुगल दरबारी उन गालियों को सुनकर हँस रहे थे!
अगले ही पल सैनिकों और शाहजहाँ के सामने वहीं पर दरबार में अमर सिंह राठौड़ ने सलावत खान का सर काट फेंका ...!
शाहजहाँ कि सांस थम गयी। इस 'शेर' के इस कारनामे को देख कर मौजूद सैनिक वहाँ से भागने लगे. अफरा तफरी मच गयी, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि अमर सिंह को रोके या उनसे कुछ कहे. मुसलमान दरबारी जान लेकर इधर-उधर भागने लगे.
अमर सिंह अपने घोड़े को किले से कुदाकर घर (नागौर) लौट आये.
शारजहाँ ने हुए इस अपमान का बदला लेने हेतु अमर सिंह के विश्वासी को नागौर भेजा और सन्धि प्रस्ताव हेतु पुनः दरबार बुलाया. अमर सिंह विश्वासी की बातों में आकर दरबार चले गए.
अमर सिंह जब एक छोटे दरवाज़े से अंदर जा रहे थे तो उन्ही के विश्वासी ने पीछे से उनपर हमला करके उन्हें मार दिया ! ऐसी हिजड़ों जैसी विजय पाकर शाहजहां हर्ष से खिल उठा.
उसने अमर सिंह की लाश को एक बुर्ज पे डलवा दिया ताकि उस लाश को चील कौए खा लें.
अमर सिंह की रानी ने जब ये समाचार सुना तो सती होने का निश्चय कर लिया, लेकिन पति की देह के
बिना वह वो सती कैसे होती। रानी ने बचे हुए थोड़े राजपूतों सरदारो से  अपनें पति की देह लाने को प्रार्थना की पर किसी ने हिम्मत नहीं कि और तब अन्त में उनको अमरसिंह के परम मित्र बल्लुजी चम्पावत की याद आई और उनको बुलवाने को भेजा ! बल्लूजी अपनें प्रिय घोड़े पर सवार होकर पहुंचे जो उनको मेवाड़ के महाराणा नें बक्शा था !
उसने कहा- 'राणी साहिबा' मैं जाता हूं या तो मालिक की देह को लेकर आऊंगा या मेरी लाश भी वहीं गिरेगी।'
वह राजपूत वीर घोड़े पर सवार हुआ और घोड़ा दौड़ाता सीधे बादशाह के महल में पहुंच गया।
महल का फाटक जैसे ही खुला द्वारपाल बल्लु जी को अच्छी तरह से देख भी नहीं पाये कि वो घोड़ा दौड़ाते हुवे वहाँ चले गए जहाँ पर वीरवर अमर सिंह की देह रखी हुई थी !
बुर्ज के ऊपर पहुंचते-पहुंचते सैकड़ों मुसलमान सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।
      बल्लूजी को अपनें मरने-जीने की चिन्ता नहीं थी। उन्होंने मुख में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी,दोनों हाथों से
तलवार चला रहे थे ! उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। सैकड़ों नहीं, हजारों मुसलमान सैनिक उनके पीछे थे
जिनकी लाशें गिरती जा रही थीं और उन लाशों पर से बल्लूजी आगे बढ़ते जा रहा थे !
वह मुर्दों की छाती पर
होते बुर्ज पर चढ़ गये और अमर सिंह की लाश उठाकर अपनें कंधे पर रखी और एक हाथ से तलवार चलाते हुवे घोड़े पर उनकी देह को रखकर आप भी बैठ गये और सीधे घोड़ा दौड़ाते हुवे गढ़ की बुर्ज के ऊपर चढ़ गए और घोड़े को नीचे कूदा दिया ! नीचे मुसलमानों की सेना आने से पहले बिजली की भाँति अपने घोड़े सहित वहाँ पहुँच चुके थे
जहाँ रानी चिता सजाकर तैयार थी !
अपने पति की देह पाकर वो चिता में ख़ुशी ख़ुशी बैठ गई !
सती ने बल्लू जी को आशीर्वाद दिया- 'बेटा ! गौ,ब्राह्मण,धर्म और सती स्त्री की रक्षा
के लिए जो संकट उठाता है,
भगवान उस पर प्रसन्न होते हैं। आपनें आज मेरी प्रतिष्ठा रखी है। आपका यश
संसार में सदा अमर रहेगा।' बल्लू चम्पावत मुसलमानों से लड़ते हुवे वीर गति को प्राप्त हुवे उनका दाहसंस्कार
यमुना के किनारे पर हुआ उनके और उनके घोड़े की याद में वहां पर स्म्रति स्थल बनवाया गया जो अभी भी मौजूद है !