मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

म्हारी एैडी़  मान्यता हैं

लारला कैइ दिन, इण बात रो  बि़चार करण में निकळ गया के  समाज री, देस री, अर दुनिया री, सेवा करण सांरू निकळया मिनख आपस में क्यूं लडै़ ? इण रो कारण कांइ हैं के व्है सगळा एकण साथे रैय ने व्है आप रे समाज री, देस री अर दुनिया री सेवा नी कर सके ? इण रा मोकळा कारण व्है सके ।पण म्हने एडो लखावे के इण रो एक कारण सेवा रे नाम माथै, खुद रे अैंकार (अंहकार) ने तिरपत करणो हैं । आप इण दीठ सूं विचार करावो के  लगै टगै सगळा मिनखां ने खुद री न्यारी ओलखाण राखण री तगडी़ भूख व्है ।इण भूख ने तिरपत करण रे वास्ते लोग तरै तरै रा जतन करै ।कोइ घणा रूपिया कमावे, कोइ बिणज वोपार करे, कोइ राज रो मोटो अहलकार बणै इण भांत विण रे रूपिया री भूख तिरपत व्है ।पण अैंकार रा कैइ रूप व्है, अर घणा झीणा व्है पकड़ में आवै कोनी ।जद रूपिया घणा व्है जावै अर ओहदो ऊचों व्है जावै तद प्रतिष्ठा री भूख जाग जावै । प्रतिष्ठा री भूख पइसा (पैसा) री भूख सूं घणी तकडी़ व्है ।इण ने तिरपत करण खातिर मिनख घणी जुगत अर जनम करे ।कोइ सराय धरम शाळ बणाय आप रो नाम मोटा आखरां में लिखावे, तो कोइ किणी री अबखी वैळा में मदद करै ।कोइ आप रा संगठण बणाय लोगां री दिन रात सेवा करण सांरू निकळ जावै ।इण भांत जद लोगां रा काम निकळै जद लोग इणां ने भर भर मूंडा ने घणी आशीष दैवे ।अर इण लोगां ने खुद ने ही एडौ़ इज लखावे के सांचाणी व्है समाज री सेवा इज कर रह्या हैं इण भांत जद प्रतिष्ठा में जद बाधैपो घणो व्है जावै तद इणां री भूख में इण सूं सवायो बाधैपो व्है जावै  । अबै इणां ने आप री बात सबसूं सिरै लागै, अर खुद रो काम सगळा सूं ऊचों दिखै ।इण भांत मिनख में आप रे अनुयायां री भूख जागै विण ने अैडा़ मिनख घणा सुहावै जका आंखिया मीच ने बात माने, मोडा़ बैगा ऐडा़ मिनख मोकळा आंने मिळ जावै, जका इयांरा जै  जै कार करे ।इण भांत भीतर में भरियो अैंकार पतिजै अर आदमी खुद ने सेवा करण वाळो समझण लाग जावै । पण जद कोइ दूजो मिनख इणीज भांत रा काम करण लागै तद इण रा अैंहकार माथै चोट पडै, दूजा मिनख री तारीफ  सहन कोनी व्है  । काळजा  में लाय लाग जावै, हीये में धपळका  उठे  के  म्हारे जैडो़  दूजो कुण ।जद विण ने रोकण रा जतन करै ।इण में साथे रैवण वाळा चेला चांटी बळती लाय में पूळा नाखण रो काम करे ।इण में जद नवो पख हार मान आपरो रस्तो बदळ दैवे तद तो ठीक हैं ।पण जद दोनूं पख सेवा रे नाम माथै खुद रे मायला अैंहकार ने पोखण वाळा व्है जद भिड़न्त टळै कोनी ।अर देस रा, समाज रा, दळ रा अर संगठण रा दोय फाड़ व्है जावै ।इण सूं सबसूं मोटो नुकसान ओ व्है के  समाज रा चावा  ठावा अर नेम धरम सूं चालण वाळा, रीत री अर नीती री बात करण वाळा लारलै छैडै़ जावै परा अर कांनो करलै अर समाज में ओछी सोच रा अर लड़ण भिड़ण वाळा आगे आ जावै अर वां री चार आंनी चालण लागै । म्हारो मानणो हैं  के सेवा तो अैक  स्वभाव हैं जिण रो कारण हीये री पीड़ हैं ,विदको किणी री मदद कर सकूं, किणी रे काम आय सकूं,  आ सोच राखण वाळो ही सेवा कर सके, अर विण रो किणी रे साथे झगडो़ नी व्है सके  म्हारी एैडी़  मान्यता हैं ।   

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